लेनिन कथा | Lenin Katha

Lenin Katha by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इल्या निकोलायेविच श्रपने बमरे मे याम कर रहे होते मा खान के कमरे का दरवाजा क्सकर बद कर देती ताकि बच्चा का शोरशराबा पिता थे बमरे तक न पहुंचे । गुलाबी नीले सुनहरे श्रौर पीले छलला से बनी कागज़ वी ज़जीरे बच्चा के हाथा म सरसराती श्र बल खाती । श्रब थाडी ही दर म नववप बक्ष वी बत्तिया जगमगान लगेंगी। चलो मववप वृक्ष देखने चले वोलोद्या न कहा। हा हा चले ग्रोत्या तुरत तैयार हो गई। नहा मीत्या भी बुर्सी से कूदकर खड़ा हो गया। और मे भी 1 सब एक दुसरे का हाथ पकड़ लो झ्रयूता न॑ कहा। भ्रघेरा हॉत रहस्यमय श्रौर जादुई सा लग रहा था। खिंडविया पर बन पाले वे डिज़ाइनो के बीच से चाद दिखायी दे रदा था श्रौर फश पर चादनी के सफेद धब्बे पड़े थे । नववप वक्ष एकाकी यडा श्रपनी पजे की तरह फली टहनिया से विरोजई महव विखेर रहा था 1 चलो सार घर का चक्कर लगायें वोलाद्या न फिर सुझाया। सभी न मालूम वया एकाएक खामोश हो गये। श्राज घर कुछ नया सा श्रसाधारण सा लग रहा था। पर वह सचमुच नया था क्यांवि उल्यानीव परिवार वुछ ही दिन हुए उसमे श्राकर रहने लगा था। छांटे से गलियारे में परदे के पीछे यह मा का कमरा था। उसमे श्रालमारी पर रखा लैम्प भद मद रोशनी विखेर रहा था। पालने मे मयाशा सोयी थी। बच्चे दबे कदम उसके पास से गुजर गये। श्रागे वे सकरे जीने से होते हुए विचले तलले पर पहुंचे जहां उनके अपन कमरे थे। यहा चाद श्रौर भी तेजी से चमक रहा था। खिंडवियों के काचा पर वने बफ के फूल छततिवन के पत्तों जैसे लग रहे थे। बच्चा ने एक दूसरे का हाथ छोडे बिना बिचले तलले का चक्कर लगाया और उसी सबरे जीने से नीचे उत्तर झ्राये। तभी पिता के कमरे का दरवाज़ा खुला। तो यहा है हमारी फौज खूशी से आगे लपककर नीचे युवने हुए उददोने बच्चा को श्रपनी वाहो में ले लिया लेक्नि उदहाने देखा वि वच्चे किसी सोच मे डूवे हुए हैं। क्सवर एक १३




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