मथुरा | Mathura

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Mathura by कृष्णदत्त बाजपेयी - Krishndatt Bajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम्हारे राज्य के निकट ही में तुम्हारा शत्रु हूं । मुझ-जेसा राजा तुम्हारे सदुश बलदृप्त सामंत को नहीं देख सकता (२१) । लवण ने यह भी कहूलाया कि राबणादि का वब करके राम ने झच्छा काम नहों किया बल्कि एक बड़ा कल्सित कर्म किया है प्रादि । इस वर्णन से प्रतीत होता हूँ कि लवग ने अपने राज्य का काफो विस्तार कर लिया न । इस कार्य में उसे झपने बहनोई हर्यइव से भी सहायता मिलो होगी । शायद लवण ने झपने राज्य को युर्वी सीमा बढ़ाकर गंगा नदी तक कर लौ थी झौर इसोलिए राम को कहलाया था कि में तुम्हारे राज्य के निकट हो हु । लबण की दर्क्पोति तथा राम के प्रति उसी डी ही चुनौती से प्रकट होता हैं कि इस समय लवण झाक्ति प्रबल हो गयी थी । झन्यया उन राम से जिन्होंने कुछ ही समय पूर्व रावण-जसे दुर्दौत जा का संहार कर श्रपने शौर्य की घाक जमा दी थी युद्ध मोल लेना हुंसो-खेल न था। लवण के द्वारा रावण को सराहना तथा राम की निंदा इस बात का सूचक हैं. कि रावण की गहित नोति और कार्प उसे पसन्व थे । इससे जया होता है कि लवण भर उसका पिता मधु संभवतः किसो झनाय शाला के थे। हो सकता हैँ कि ये दोनों शक्तिदयाली यक्ष रहें हों डी इस झनुमान डाइट घ्टि के लिए झभी पवदय हो झधिक पुष्ट प्रमाणों को ग्रावशयकता है। मधु को नगरो मधुपुरो के जो वर्णन प्राचोन साहित्य में मिलते हैं उनसे ज्ञात होता है कि उस नगरों का. स्थापत्य उच्चकोटि का था। दत्रुध्त भी उस रम्य ड तो को देख कर चकित हो गये झौर झनुसान करने लगे कि वह देवों के हारा तिमित हुई होगी । प्राचीन साहित्य में झसुरों के विशाल तथा दुढ़ किलों एवं मकानों के झनेक उल्लेख मिलत हूं। संभव है कि लवण-पिता मधु या उसके किसी पुबंज नें यमुना के तटवर्तों प्रदेश पर झ्धिकार कर लिया हों । जैसा कि ऊपर कहा गया हूँ यह अधिकार लवण के समय से समाप्त हो गया । सुयंवंश का आविपत्य--दात्रुष्त धर लवण का युद्ध महत्व का है । इस युद्ध में शत्रुघ्न एक बड़ी सेना लेकर मवुवन पहुंचे होंगे । _ उनकी यह विजय-यात्रा संभवत प्रयाग होकर यमुना नदी के किनारे के मार्ग से हुई होगी। लवण ने उनका अत किया परन्तु वह परास्त हुआ शोर मारा गया । दायद हर्यइव भी इस पुद्ध में समाप्त कर दिया गया । लवण के पिता. मधु को मृत्यु इस युद्ध के पहले ही हो चुकी थी । इस विजय से झपोध्या के ऐक्वाकुओं की घाक सुदूर यमुना-तटवर्ती प्रदेश तक जम गयो । रावण के वध से उनका या पहले हो दक्षिण में फेल कर ख का था। झब पश्चिम को विजय से वे बढ़े दाक्ति- बाली गिनें जाने लगे झौर उनसे लोहा लेने वाला कोई न रहा । उन्होंने झपने पुत्र सुबाहु को इस नये श्रसेन जनपद का स्वामो नियुक्त किया (२२९ )॥ (२१) विधवा ं नव तोशस्मि तब राम रिपुष्च हू । मस्तमिच्छस्ति राजानों बलदपितमू ॥। (हरि १ ५४ २८) (२९) कहां-कहीं शत्रुघ्न द्वारा जनपद पर सुवाह के स्वान पर दूसरे पुत्र श्रसेन के नियुक्त करने का उल्लेख मिलता है। उदाहरणाथें देखिए कालिवास-- दि झाजुघातिनि बातुध्तः खुबाहो च बहुधुते । ले मयुराविदिशें सुम्वोनिदे पूर्व जोत्सुक ॥ (रघुबंद १५ ३६) हो सकता है कि पहले सुबाहु कुछ दिन शुरसेन जनपद का दासक रहा हो धर उसके यहां से चले जाने पर कस का ह स्वामी बना हों। इसी शुरसेन के नाम पर जनपद का नामकरण होने को चर्चा ऊपर जा है। ३०




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