विकासात्मक मनोविज्ञान | Vikasatmak Manovigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश २१ किसी कारण से उसमें कमी न श्रा. जाय अथवा श्रगर उसका व्यवहार सामात्प है तो उनमें श्रसामान्य व्यवहार न विकसित हो जाय 1 मानसिक स्वास्थ्य का दूसरा उदय है कि बच्चों का असामान्य वातावरण से दूर रखा जाय नार्क्ि असामान्य व्यवहार विकम्शति होने से उसका बचाव हो सकें ।. प्राय साथियों की संगति में बच्चे कुछ एसे व्यवहार सीख लेते है जो सामाजिक मान्यता के प्रतिकूल होते हैं । श्रत एऐनी परिस्थितियों से निवारण ( 66107 ) करना मनोवेज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्तम है ताकि उनमें स्वस्थ मानसिक विकास हो सके । तीसरा उद्देश्य है कि अगर बच्चों में अतामास्पता ( छ0प्0एराक्रपि ) आ गई है और वे सामान्य जीवन बिताने में श्रसमर्थ है तो उनकी चिकित्सा की व्यवस्था की जाय ताकि वे स्वस्थ हो सकें । श्रत सावसिक स्वास्थ्य की उपयोगिता झ्राज- कल सवेमान्य है । मां-बाप तया श्रध्यायकों को वच्चां के मानसिक स्वास्थ्थ पर काफी ध्याद देना चाहिये । श्रीर यह तभी सम्भव है जब वे बाल मनोविज्ञान की उचित जानकारी रखें तथा उसके नियमों के मुताबिक बच्ची की देखभाल करें 1 श्रगर सभी माँ-बाप इसकी उपयोगिता को श्रच्छी तरह समझ कर बच्चों के पालन-रापसा ग्रोर शिक्षा की व्यवस्था करें तो राष्ट्र के सभो बच्चों के सावनिक स्वास्थ्य उत्तम तथा उनका जीवन श्रघिक नुखमय श्रोर उन्नत हो सकता है । अध्यय न-विधियाँ ( 60005 01 5प्रपेए ) १. जीवन-वृत्तान्त विधि ( छाण०्छर्न्यूजपण्क खलए0त जोवन-इत्तान्त विधि बहुत ही पुरानी विधि है जिसके द्वारा बच्चों के विकास ( (6४610 ) तया व्यवह्दारों ( 9610&ए10प7 ) का. अध्ययन किया जाता हैं । प्राय माँ-वाप श्रयवा अभिभावक के द्वारा ही जीवन-इत्तान्त लिखा जाता है। बच्चों की हर रोज की प्रतिक्रिया ( 7680078568 ) तथा उनकी दारीरिक बद्धि ( 050 छुस०फाणि। ) आदि का समावेदा इस ब्रतान्त में किया जाता हैं । शुरू में बच्चों का जोवन-इतान्त माँ-बाप तथा संबंधी ( ऊ6]89.- पंए68 ) काफी रुचि के साथ लिखते थे । फलत पुवं धारणा (7ुंप्ता06) का प्रत्यक्ष प्रभाव दीख पड़ता था । प्राय निरीक्षण ( 0056ाप्रक्षप्रिंणा ) के समय व्यवहारों को वे नहीं लिखा करते थे ्रोर यथेष्ठ रूप से निरीक्षण भो नहीं करते थे । इन दोषों को दूर करने के लिये क्रम-वद्ध जीवन- ब्त्तान्त (3िए866-




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