विवेकानन्द संचयन भाग 1 | Vivekanand Shanchan Bhag 1

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Vivekanand Shanchan Bhag 1 by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का तात्पर्य वास्तव में बाह्म दृष्टि से नहीं यथार्थ दृष्टि अन्तरिद्रिय की भीतर रहनेवाले मस्तिष्क के केन्द्रसमूहो की है । तुम चाहे जिस नाम से पुकारो परन्तु इंद्रिंय शब्द से हमारी नाक कान आंखें नहीं सिद्ध होतीं और इन इद्रियसमूहों की ही समण्टि मन बुद्धि चित्त अहंकार के साथ मिलकर अंग्रेजी मे साण्दड (0006) नाम से पुकारी जाती है और यदि आधुनिक शरीरवैज्ञानिक तुमसे आकर कहें कि मस्तिष्क ही माइण्ड (एंए0) है और वह मस्तिष्क ही विभिन्न सूक्ष्म अवय्वों से कठिन है तो तुम्हारे तिए डरने का कोई कारण नहीं । उनसे तुम तत्काल कह सकते हो कि हमारे दार्शनिक बराबर यह बात॑ जानते है यह हमारे धर्म के प्रथम मुख्य सिद्धान्तों में से एक है। सैर इस समय तुम्हे समझाना होगा कि मन बुद्धि चित्त अहंकार आदि शब्दों के कया अर्थ हैं । सब से पहले हम चित्त की मीमांसा करे । चित्त वास्तव मे अन्त.करण का मूल उपादान है यह महत्‌ का ही अंश है। विभिन्न अवस्थाओं के साथ मन का ही एक साधारण नाम चित्त है। उदाहरणार्थ ग्रीष्मकाल की उस स्थिर और शान्त ज्ञील को लो जिस पर एक भी तरंग नहीं है। सोचो किसी ने उस पर एक पत्थर फेंका तो उससे कया होगा ? पहले पानी पर जो आघात किया गया उससे एक क्रिया हुई इसके पश्चात्‌ पानी उठकर पत्थर की ओर प्रतिक्रिया करने लगा और उसी प्रतिक्रिया ने तरंग का आकार धारण किया । पहले-पहल पानी जरा कांप उठता है उसके बाद ही तरंग के आकार में प्रतिक्रिया होती है । इस चित्त को झील की तरह समझो और बाहरी वस्तुए उस पर फेके गये प्रस्तरखण्ड हैं । जब कभी वह इंद्रियों की सहायता से किसी बहिर्वस्तु के संस्पर्श में आता है बहिर्वस्तुओ को भीतर ले जाने के लिए इन इ द्रियो की जरूरत होती है तभी एक कम्पन उत्यित होता है । वह मन है - संकल्प-विकल्पात्मक । इसके बाद ही एक प्रतिक्रिया होती है वह निश्चयात्मिका बुद्धि है और इस बुद्धि के साथ-साथ अहंज्ञान और बाहरी वस्तु का बोध पैदा होता है। जैसे हमारे हाथ पर मच्छर ने बैठकर डंक मारा संवेदना हमारे चित्त तक पहुंची चित्त जरा कांप उठा- हमारे मनोविज्ञान के मत से वही मन है । इसके बाद एक प्रतिक्रिया उठी और साथ ही साथ हमारे भीतर यह भाव पैदा हुआ कि हमारे हाथ में मच्छर काट रहा है इसे भगाना चाहिए। इसी प्रकार झील में पत्थर फेंके जाते हैं । परन्तु इतना जरूर समझना होगा कि झील पर जितने आधात होते हैं सब बाहर से आते हैं परन्तु मन की झील में बाहर से भी आघात आ सकते हैं और भीतर से भी । चित्त और उसकी इन भिन्न- भिन्न अवस्थाओं का नाम ही अन्त करण है । पहले जो कुछ कहा गया उसके साथ और भी बात समझनी होगी। उससे अद्वैतवाद समझने में हम लोगो को विशेष सुविधा होगी । तुममें से प्रत्येक ने मोती 19




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