सूर सौरभ | Suur Saurabh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.09 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. मुंशीराम शर्मा - Dr. Munsheeram Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 जध & क जान के दा अड़ा विश्व सत् और असत् दो तत्वों के मिश्रण का नाम है । विश्व का सत् अँश उसे स्थिर और अविनश्वर बनाता है तथा य्रात् अंश अस्थिर और विनश्वर । एक चेतन है दूसरा जड़ एक में मानसिक पक्त है दूसरे में पार्थिव । कतिपय दाशनिक पार्थिव पक्ष को सानरिक प्न्त का हो रूपान्तर मानते है । इनके मत में अस्तरिक विधारघारा भावना तथा संस्कार बाद्य चेष्टाओं और शारीरिक विकास मे प्रकट हुआ करते हैं । दूसरे दाशंनिक ठीक इसके विपरीत कहते है । इनके मत में मानसिक क्रियायें बाह्य शारीरिक चेप्टाओओं की परिणाम है । कुछ हो इतना तो निश्चित है कि विश्व का एक झंश--मानव-इन दोनों तत्वों से मिल कर बना है। जो उपादान विश्वत्रह्मारड के मूल में है वही इस पिंड में सी कास कर रहे है यत्पिणडेततब्रह्मारडे वाली ऋषियों की उक्ति का यही झयें है । भारतीय ऋषियों के चिन्तन का केन्द्र आायः विश्व का सत झर्थात् चेतन अंश रहा है । झसत अंश की उन्होंने उपेक्षा ही की है। उनकी दृष्टि में मल-मूत्र मात्र श्रस्थिचर्मावयवविशिष्ट शरीर का कोई महत्व नहीं है--यह तो साधन है । साध्य वस्तु इससे भिन्न है । उपनिषदों मे इस साध्य वस्तु को झात्मतत्व कहा दे और उध्बस्वर से घोषित किया है-- आत्मा वा अरे हप्टव्यः श्रोतब्यः निदिष्या सिंतब्यः दात्मनस्तु कामाय से प्रिये भवति--अर्थात् मनुष्यी कया शरीर के पीछे पढ़े हो ? झरे झात्मा ही दर्शनीय श्रवशीय है । उसी का विचार करों 1 उसी के द्वित से भ्रन्य चस्तुयें प्रिय लगती है ।
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