माधुर्य लहरी | Madhurya Lahari

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Madhurya Lahari by केशवदेव शर्मा - Keshav Dev Sharmaश्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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केशवदेव शर्मा - Keshav Dev Sharma

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श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पे नप्र १ # १ ९: १.१ ना + माघुय लहरी ७ १-१ धान न+ शान पाप्नी नो जा महिमा बरनन करो, मेरों चित्त लुभाय । वे लीला मन भावनी, कहे श्रथ अझधिकाय ॥कड।। बोले सनत्कुमार तब, मद्दाराज गुरु पाय। मदभाग्य अति जानिये, जो ससे नहि जाय ॥६८)॥। लघु दीरघ झाचरन जो, छझापु करो मन ल्ाय । केवल जीव उधार हित, और न हेतु लखाय ॥६४।। कहिये मोहि बुमाय अब, कोन लोक किहि ठाम | नित्य बिहारी रूप को, लीला जे छमिराम ॥७०॥। जैसे इमरी होय गति, तह्ाँ जाइबे जोग्य | सो साधन वरनन करों, सब विधि परम मनाज्ञ ॥७१॥। सनत्कुमार वचन ए, सुनि पायो. अतिचेन | बोले हसगुपाल श्री, निज भक्तन सुखदैन ॥७२॥। या प्रसग मैं अब सुनो, पुराचीन इतिहास । जेहि जाने ते ह्ोत है, सब विधि ससैे नास ॥७३॥। ईश्वर इच्छा ते जगत, सब दिन डेसे दोय । काल नेम ता को नहीं, कहै झग ले कोय ॥७४॥ एक से यह जानिये, मद्दाप्रलय के झत । जग उपजावन की करी, इच्छा श्री भगवत 115५ प्रथम नासिका स्वास ते; प्रगटे वेद सुजान । सकल जगत सरजाद दित, घर्में झघम प्रमान 1७! जग कारज कारन कोड, ते जिमि जाने जादि | तीनि कल्प की रीति जो, कछू कही विन माहि । उड। त्रझ कल्प आओ पाद्य पुनि;, स्वेत वरादद पवित्र । कल्प कल्प प्रति ब्यास हैं. किये पुरान विचित्र ।॥उ८।। वदाकल्प भागवत में, नामि कमल अजसष्ट । कहो वराद. पुरानमै, स्वेत वराह विसरूष्ट ॥७£॥ 'त्रह्मवैबतें पुरान को; ब्रह्मखड सुभ जानि। ब्रह्मक्ल्प की रीति जो, तामे कहो बखानि 1 ८०। न्र्कल्प की रीति झब, स्वल्प सुनो मन ल्याय । ब्यों ससे नासे, सऊल्ल, जीव परम पद जाय ।'८१।|




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