माधुर्य लहरी | Madhurya Lahari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31.26 MB
कुल पष्ठ :
403
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
केशवदेव शर्मा - Keshav Dev Sharma
No Information available about केशवदेव शर्मा - Keshav Dev Sharma
श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee
No Information available about श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पे
नप्र १ # १ ९: १.१ ना
+ माघुय लहरी ७
१-१ धान न+ शान पाप्नी नो
जा महिमा बरनन करो, मेरों चित्त लुभाय ।
वे लीला मन भावनी, कहे श्रथ अझधिकाय ॥कड।।
बोले सनत्कुमार तब, मद्दाराज गुरु पाय।
मदभाग्य अति जानिये, जो ससे नहि जाय ॥६८)॥।
लघु दीरघ झाचरन जो, छझापु करो मन ल्ाय ।
केवल जीव उधार हित, और न हेतु लखाय ॥६४।।
कहिये मोहि बुमाय अब, कोन लोक किहि ठाम |
नित्य बिहारी रूप को, लीला जे छमिराम ॥७०॥।
जैसे इमरी होय गति, तह्ाँ जाइबे जोग्य |
सो साधन वरनन करों, सब विधि परम मनाज्ञ ॥७१॥।
सनत्कुमार वचन ए, सुनि पायो. अतिचेन |
बोले हसगुपाल श्री, निज भक्तन सुखदैन ॥७२॥।
या प्रसग मैं अब सुनो, पुराचीन इतिहास ।
जेहि जाने ते ह्ोत है, सब विधि ससैे नास ॥७३॥।
ईश्वर इच्छा ते जगत, सब दिन डेसे दोय ।
काल नेम ता को नहीं, कहै झग ले कोय ॥७४॥
एक से यह जानिये, मद्दाप्रलय के झत ।
जग उपजावन की करी, इच्छा श्री भगवत 115५
प्रथम नासिका स्वास ते; प्रगटे वेद सुजान ।
सकल जगत सरजाद दित, घर्में झघम प्रमान 1७!
जग कारज कारन कोड, ते जिमि जाने जादि |
तीनि कल्प की रीति जो, कछू कही विन माहि । उड।
त्रझ कल्प आओ पाद्य पुनि;, स्वेत वरादद पवित्र ।
कल्प कल्प प्रति ब्यास हैं. किये पुरान विचित्र ।॥उ८।।
वदाकल्प भागवत में, नामि कमल अजसष्ट ।
कहो वराद. पुरानमै, स्वेत वराह विसरूष्ट ॥७£॥
'त्रह्मवैबतें पुरान को; ब्रह्मखड सुभ जानि।
ब्रह्मक्ल्प की रीति जो, तामे कहो बखानि 1 ८०।
न्र्कल्प की रीति झब, स्वल्प सुनो मन ल्याय ।
ब्यों ससे नासे, सऊल्ल, जीव परम पद जाय ।'८१।|
User Reviews
No Reviews | Add Yours...