हिंदी साहित्य खंड 2 | Hindi Sahitya Khand 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र .................. हिंदी साहित्य उसके अनुसार कन्नौज पाँच मील लम्बें और सवा मील चौड़े क्षेत्र में बसा हुआ था, उसके भवन स्वच्छ व सुन्दर थे, वहाँ के निवासी समृद्ध और वैभवपूर्ण थे और सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण करते थे । कन्नौज की रचना एक दुर्ग के समान की गई थी । उद्यानों और जलाशयों की भी वहाँ . प्रचुरता थी । .... हरप (६०६ से ६४६ ई० -सं० ६६३ से ७०३ वि०) के बाद भारत के प्राचीन इतिहास में कोई एसा राजा नहीं हुआ, जो मध्यदेश (हिन्दी प्रदेश) के बड़े भाग को अपनी अधीनता में ' छाने में समर्थ हुआ हो । वस्तुत: इस युग में (सातवीं सदी से बारहवीं सदी ई० के अन्त तक) इस क्षेत्र के विविध प्रदेशों पर विविध राजवंशों का शासन रहा । उनके राजा परस्पर युद्धों में व्यस्त रहे और अन्य राज्यों को जीतकर अपनी अधीनता में लाने का प्रयत्न करते रहें। इस यग को भारत के इतिहास का सध्ययुग भी कहते हं। _ हर्षवर्धन के बाद लगभग एक सदी तक मध्यदेश की *राजनीतिंक दा के सम्बन्ध में निद्चित ज्ञान उपलब्ध नहीं है। कन्नौज में (जो इस समय उत्तर भारत की राजझक्ति का केन्द्र था) इस काल में किन राजाओं का दासन था, यह हमें ज्ञात नहीं है। परन्तु आठवीं सदी के पुवर्ध में कन्नौज में एक अन्य राजा हुआ जो हर्षवर्धन के समान ही प्रतापी था । इस राजा का नाम यशोवर्मा (७२७ से ७५२ ई० नल सं० ७८४ से ८०९ वि०) था । इस वीर राजा ने एक बार फिर उत्तर भारत को एक शासन में लाने का प्रयत्न किया. और प्रायः सम्पूर्ण मध्यदेश (हिन्दी प्रदेश) पर शासन करने में वह समथे हुआ । यश्योवर्मा ने पु्वेदिशा में दिग्विजय करते हुए मगध से गुप्तवंद के शासन का अन्त किया और गौड़ देश (बंगाल) की भी विजय की । इस विजय का वृत्तान्त कवि वाकपति नें 'गौड़वहो' में विस्तार से लिखा है जो प्राकृत भाषा का एक उत्कृष्ट महाकाव्य है। संस्कृत का प्रसिद्ध कवि भवभूति भी यद्योवर्मा की राजसभा में रहता था । यशोवर्मा के कुछ समय बाद कन्नौज का शासन एसे राजाओं के हाथ में चला गया, जिनके. नाम के अन्त मे 'आयुध' शब्द आता हैं। सम्भवतः ये राजा आयुधवंश के थे । इन्हें हर्षवर्धन _ के सेनापति भष्डि के वंश का समझा जाता है। ये राजा निबंल थे । इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर भारत के बड़े भाग पर कन्नौज का आधिपत्य नहीं रह गया। इस काल में वस्तुत: उत्तर भारत मं एक. प्रकार की अराजकता-सी छाई हुई थी और विविध प्रदेशों में अनेक नए राज्य कायम हो गए थे । इस स्थिति में पूर्वी भारत में गोपाल नाम के एक वीर पुरुष ने अपना सुसंगठित राज्य स्थापित किया और एक नए वंश का प्रारम्भ किया, जो इतिहास में 'पालवंश के नाम से प्रसिद्ध है। यह गोपाल ७६५ ई० (सं० ८२२ वि०) के लगभग बिहार-बंगाल का राजा वना । गोपाल के उत्तराधिकारी बड़े वीर और प्रतापी थे। उन्होंने न केवल बिहार-बंगाल के . प्रदेशों पर दृढ़तापुवंक बासन किया, अपितु पश्चिम की ओर आक्रमण कर कन्नौज के राज्य को ... भी अपने अधीन.किया । पालवंशीय राजा धर्मपाल (७७० से ८०९ ई० -न्सं० ८२७ से ८६६ ... बि०) का शासन प्राय: सार उत्तर भारत में विद्यमान था और कन्नौज के राजा चक्रायध की स्थिति ... उसके महासामन्त के सदूदा थी। ल जौ इसी समय राजस्थान की मरुभूमि में एक अन्य शक्तिशाली राजवंश का उत्कर्ष हो रहा




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