तुलसी सतसई भाषा टीका साहित्य | Tulsi Satsai Bhasha-teeka-sahit

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Tulsi Satsai Bhasha-teeka-sahit by श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरथम से । | प्रभु मत्स्थादि अवतार मकट करे तब श्रीर्जाने कहा ये रूप किलितू काल रहेंगे श्र विचित्र कीति भी नहीं ये भी सुलभ नहीं तव मम धीरह व्यझ्टाद्रि सब व्यक्रूप प्रकट करे तब श्रीजीने कहा एक तो सब देश में नहीं सबको पूजा करिवे को दुसंभ दर्शनमातर सोऊ सुलभ नहीं तब अ्मु ने कहा शव तुम बताओ सो करी तब थीखामिनीजीन कहा कि हे माणनाथ ! आप मतुजाकार माधुररूप मछुतिमएत में ऐसे भाधुबेमिश्रित विचित्र लीला करि यश कीर्ति गुण प्रताप प्रकट करो तब सबको छुलभ होई तब श्रीराम जानकी युगलरूप जीवन के सुलभ हेतु प्रकट ऐसे दयासिन्शु मय शरणागत को कैसे त्यागें इत्यादि भगवदूगुदूपण में मसिद्ध है । इकतालिस वी मच्छ दोहा ॥ € ॥.. ... दोहा तात मात सिंय राम रुख; बुषि विवेक परमान। हरत अखिल अथतरुएतर: तबहुलसाकढुजान १० पूर्वाग्यासते ज्यों ज्यों पाप होतगये होते होते तरुण कहे युवा है चढ़ चढत तंरुणतर करे विशेष चलिए भय ताते दु ख मोहादि खमानपकूप में परेते विवेकरहित हुद्धि मन्द भई ताते जीव भ्रमित शोक को पात्र भयों जब माता पिता श्रीराम जानकी भाजुमभा के रुख कहे सम्पख बुद्धि भई तिनकी दया मकाशते खिल करें सम्पूर्ण अब तरुणतर कहे वलिप्रुप अन्पकार नाश भयों तर बुद्धि मकाश में सन्तुष्ठ है विवेक परमान परम दिंवेक को सन्त भरे भार विज्ञानको निरुपश करती भरें तब तुलसी कह जान भाव ओरामसुयश कहवेकी गति भई दल दोहा यहू है ॥ १० ॥




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