भारतीय साहित्य शास्त्र | Bharatiya Sahityashastra

Bharatiya Sahityashastra by बलदेव उपाध्याय - Baladev upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वक्तव्य शलैकारशास्त्र संस्कृत-साहित्य की एक श्रनुपम निधि है । श्रलकार- शास्त्र के केवल उभिघान पर ही इष्टि रखनेवाले व्यक्ति को यह शास्त्र काव्य के बहिरडड साधनों का ही प्रतिपादक मले सिद्ध हो परन्ठु इसके द्न्तरड के परीक्षकों से यह बात परोक्ष नहीं है कि यह काव्य के मुख्य न्तस्तरवों का वैज्ञानिक रीति से विवेचक शास्त्र है । दम।रा अलकारशास्त्र पाश्चात्यों के पोइटिक्स रेटारिक तथा एस्थेटिक का समानमभावेन प्रति- निंधित्व करता है । पोइटिक्स में काव्य तथा नाटक की महनीय समीक्षा की गई है । रिटारिक मे वकतृत्वकला तथा तढुपयोगी गद्य के शुण-दोषो का ग्रकाणड विवे्वन है । एस्थेटिक में सौन्दर्य के रूप तत्व तथा महत्त्व का दार्शनिक रीति से विवरण प्रस्तुत किया गया है। भारतीय शझलकारशास्त्र में इन तीनों विभिन्‍न शास्त्रों के सिद्धान्त का एकत्र सुन्दर र्मीक्षण है । काव्य का सर्वस्व आत्मयूत है रस श्रौर इसी रस के श्रद्डों तथा उपाड़ों का साड़ीपाड़ विवेचन झलंकारशास्त्र का उद्देश्य है। पश्चिमी जगत्‌ की काव्यालोचनपद्धति भी कम मूल्यवान्‌ नहीं है परन्तु हमारे रसशास्त्र की तुलना में उसे चह महत्त्व प्राप्त नदी हो सकता जिसे साधारण शआलोचक उस पर श्रारोपित करते हैं । शझ्रलकारशास्त्र तो निःसन्देह रसशास्त्र अथवा सौर्दयशास्त्र है जिसका झनुशीलन तथा मनन टो सहसख्र वर्षों से इस भारत- भूमि में होता आ रहा है। भरत से लेकर परिंडतराज जगन्नाथ तक से मान्य आलोचकों ने ऋ्पनी सूदम विषयाहियणी बुद्धि से जिन आलोचनातत्त्वों को उन्मीलित किया है वे ससार के श्रालोचना-जगत्‌ के लिए यितान्त रुददणीय उपादेय तथा आदरणीय हैं । औरचित्य रस श्र ध्यनि थे सिद्धान्त विश्वसाहित्य के लिए हमारी महती देन हैं जिसका मूल्याइन आज की श्पेक्षा भविष्य में और भी झ्धिकता से होने की सम्भावना है । हमारे हिन्दी साहित्य में श्रालोचनाशास्त्र का अम्युद्य धीरे धीरे सम्पन्त हो रहा है । अनेक प्रवीण झालोचक इस साहित्य की अभिवृद्धि के लिए




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