हिंदी भाषा का संक्षिप्त इतिहास | Hindi Bhasha Ka Sankshipt Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.36 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकार बेदिक संस्कृत को परम्परागत रूप से अनुदात्त, उदात्त एवं त्वरित
तीन प्रकार के स्वराघात (सगीतात्मक) प्राप्त हुए थे । स्वराघात का
इतना अधिक महत्व था कि सभी स हिताओ, कुछ ब्राह्मणो एव आरण्यको
तथा वृहदारण्यक आदि कुछ उपनिपदों की पांडुलिपि स्वराघात-चिद्ल्लित
मिलती हैं और विना स्वराघात के वैदिक छन्दो पढ़ना अशुद्ध माना जाता
है । स्व॒राघात के कारण शब्द का अ्थे भी वदल जाता था । 'इन्द्रदत्रु'
चला प्रसिद्ध उदाहरण सर्वविदित है: इन्द्र बान्न' « जिसका शत्रु इन्द्र है
(वहुवीहि ), इन्द्रशल्लु-इन्द्र का बनु (तत्पुरुष) । दाव्द आदि के अथ॑
जानने में स्व॒राघात का कितना महत्त्व था, यह वेंकट माधव के “अंधकारे
दीपिकाभिर्गच्छन्त स्खलित क्वचित् । एवं स्वरें: प्रणीतानां भवन्त्यर्था:
स्फूटा इच' (अर्थात जंसे अन्वकार में दीपको की सहायता से चलता हुआ
कही ठोकर नहीं खाता, इसी प्रकार स्वरो (स्वराघात) की सहायता से
किए गए अर्थ स्फूट अर्थात् सदेहगून्य होते है) कथन से स्पष्ट है। स्वरा-
घात से परिवर्तन से कभी-कभी लिंग मे भी परिवर्तन हो जाता था । टर्नर
के अनुसार वेदिक संस्कृत मे संगीतात्मक एवं वलात्मक दोनो ही स्वराघात
था।
रूप-रचना :
वैदिक भापा में लिंग तीन थे : पुलिंग, स्त्रीलिंग, नपुसकलिंग ।
चचन भी तीन थे : एक ०, वहु० । कारक-विभक्तियाँ आठ थी * कर्ता, सम्वो-
धन , कम, करण, सम्प्रदाय, अपादान, सम्बन्ध, अधिक़रण । विशेषणों
कें रूप भी सजा की तरह ही चलते थे । मूल भारोपीय मे सर्वेनाम के मूल
या प्रातिपदिक बहुत अधिक थे । विभिन्न बोलियो मे कदाचित् विभिन्न
मूलों के रूप चलते थे । पहले सभी मूलो से सभी रूप वनते थे, किन्तु
वाद में मिश्रण हुआ और अनेक मूलो के अनेक रूप लुप्त हो गए । परि-
णाम यह हुआ कि सुलत विभिन्न मूलो से बने रूप एक ही मूल के रूप
माने जाने लगे । वैदिक भाषा मे उत्तम पुरुप में ही, यद्यपि प्राचीन पड़ितो
ने 'अस्मद्' को सभी रूपों का मूल माना है, यदि ध्यान से देखा जाय तो
मह-(अहमू ), म-(मामु, मया, मम, सयि), आव (आवम्, आवाम्,
वाम्, आवयो ), वय (वय ), असम (अस्माभि. अस्मभ्यम् अस्मे आदि) ;
प्रवेदा ११
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