मोहन राकेश के कथा साहित्य में पारिवारिक सम्बन्धों के विघटन के स्वरूप का अध्ययन | Mohan Rakesh Ke Katha Sahitya Me Parivarik Sambandho Ke Vighatan Ke Swaroop Ka Adhyayna
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.02 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्त्री-पुरूषो मे व्यक्तिवादिता बढने से वैवाहिक सम्बन्धो की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पडा। स्नेह और प्रेम की आशा से किये गये विवाह के बाद यदि एक पक्ष मे व्यक्तिवादी भावनाएं प्रबल हो जाये तब सामान्यत दोनों पक्ष इसे अपना दुर्भाग्य मानने लगते है और इसका स्वाभाविक परिणाम विवाह-विच्छेद के रूप मे सामने आता है। वास्तव मे विवाह का आरम्भ प्रेमपूर्ण बन्धनो से होता है लेकिन विवाह की स्थिरता के लिए इन बन्धनो के अतिरिक्त कुछ अन्य दशाओ का भी होना आवश्यक है। विशेषरूप से पति-पत्नी की मनोवृत्ति और विचारों में समानता होना परिवार के सगठन के लिए आवश्यक है। यही पारस्परिक निर्भरता की कमी स्त्री-पुरूष सम्बन्धों मे दरार पैदा करती है। वर्जेस और लॉक का कथन है कि यद्यपि विवाह एक वैधानिक और धार्मिक बन्घन माना जाता है यह वास्तव मे एक वैयक्तिक बन्धन है जिसमे पति-पत्नी के विचारों इच्छाओ और मनोवृत्तियो का परिवारकी सस्थनात्मक सरचना से भी अधिक महत्व है। इसलिए पारिवारिक तनावो की प्रवृत्ति तथा पारिवारिक विघटन से उनके सम्बन्ध को जानना आवश्यक हो जाता है। वास्तव मे वैयक्तिक तनाव वे प्राथमिक तनाव है जो पति-पत्नी के व्यक्तित्व से सम्बन्धित होते है। उदाहरण के लिए पति-पत्नी के परस्पर-विरोधी स्वभाव सामाजिक मूल्यों मे विरोध व्यवहार प्रतिमानों की भिन्नता यौनिक असन्तुष्ट दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित विरोधपूर्ण भूमिकाओ और मानसिक रूप से विकार युक्त व्यक्तित्व के कारण परिवार मे जो तनाव उत्पन्न होते है इन्ही तनाव के कारण पति-पत्नी एक-दूसरे पर सदैव दोषारोपण करते रहते है और प्रत्येक स्थिति के लिए दूसरे को उत्तरदायी मानते हैं। पारस्परिक अविश्वास सामान्य विषयों पर मतभेद झगडालू प्रवृत्ति तथा मानवीय व्यवहार इन दशाओं का स्वाभाविक परिणाम होता है जो दोनो प्राणियों के बीच विघटन उत्पन्न कर देता है। पति-पत्नी की सामाजिक स्थिति मे परिवर्तन हो जाने से अक्सर नये प्रकार के तनाव जनम ले लेते हैं। इन तनावो की प्रकृति भी भिन्न-भिन्न सामाजिक वर्गों मे भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। उच्च सामाजिक वर्ग मे लडकी को अपने पति के यहाँ उतनी स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती है जो उसे अपने पिता के घर मे मिलती रही थी। कभी-कभी भिन्न व्यवहार प्रतिमानो तथा जीवन स्तर सम्बन्धी विशेषताओ के कारण भी वह अपनी नयी दशाओं मे अनुकूलन नहीं कर पाती । मध्यवर्ग मे पति तथा पत्नी दोनो की ही महात्वाकाक्षाए बहुत अधिक होती 6
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