कल्याण हिन्दू सन | Kalyan Hindu San
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52.99 MB
कुल पष्ठ :
727
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संख्या २1]
५ जगछुरा फिंदू %
९१७
न्ाक्षशिला» श्रीपन्य और फटकंक्ति निश्वनिधालय छात्रॉसि परिपूर्ण
शा मरते में ।
जदोतिक गापाका प्रश्न है दरों छान बरेठेंटारग ( 127,
करा फाकाछुाएं ! और बाप ( फ़ेणु न चिद्याननि भी
उुसानाण्ठर स्वीफार किया है कि 'संरठत ही पक ऐसी भागा
शी» जो मिश्गरं प्रयछित थी और यही सागर भारतीय
शर यूरोपियन ( 1परते०ैपाएफूलएा ) गापार्जोकी जननी
'भी है । हिंदु्कों अक्षर और शापाशान जनादिकालमे है
और ईसाके २४०० नर्प तथा ए्रादीगकि ८०० चर्प पूर्णती
पछिसी पुखकेंतक पायी गयी हूँ |?
जब लीजिये एंदुअंकि साहित्यकी । जर्दोग्रिक नेदका
'डश्न ऐ, सभी निद्यानेगि उसे ,रार्वशरेष्ठ गाना है | प्र ० पीनरागूछर
| न ) वश धलि' ) ने बाद हि कि इसकी सगानताएं
किम गे अगतक नुछ थी नहीं दिया ।* प्रसिद्ध फ्रांसीसी
दार्शनि' हक ( प०णफ़ााए ) ने जय श्रृग्वेदकों देखा
तो. बह ' भाभयंति सिवा उठा कि नल इसी देनके
दिये पश्चिग पूर्षका रादा श्राणी रंद्गा ।* यदि गेदकी
प्रद्यंसासं पश्चिंगी पिदानेंकि वि्वारंकी एक-एक पुचि भी
लिखी जाय तो एक र्वतन्त्र पुखाक प्ररतुत दो राकती है ।
प्रसिद्ध व्याकरणशाख्री तर मोनियर विलियम्स ( 817 00
एएप1100008 ) ने पाणिनिका व्याकरण देखकर कहा--'इससे
गढ़कर बिशने व्याकरणकि नियग कभी बनाये ही नहीं । इसका
पवानएक सूत आध्र्यनकित कर देता ( ।' काव्य बिश्के
किसी राष्ट्रने ऐसा साहित्य नहीं उत्पपा किया; जा रागायण
फ् ई डा सगानता बार सके । मैदांकि अनुसादक
प्रिन् ।णिपिकें( 0000 ) ने रागायणके बारेगे लिखा
ह--गीखखके किसी थी काव्यों साबित्त और मैतिकताका
ऐसा राशिगश्रण नहीं पाया जाता । रागायगकी सगानता दोगर-
रय्वित तीन इखियर' और गहाभारतकी समानता बारह लियए'
भी नहीं कर सकते ।* भारतीय'नाट्यदास्रपर सर विलियग
नोन्स ( 51 फषफा लात ) ने लिखा है कि
ध्गारतीय नाटकॉकी सगानतारं शाज विश्वके उन्नततग राष्ट्रेकि
नाटक थी नहीं आ सकते ।* जभिशानशानुन्तलकं पढ़वार तो
जर्नीका प्रसिद्ध कवि. गेटे ( (00100). गदूगद
ऐ उठा जौर उसने खयं॑ भी पक कविता लिश
दी । उसके प्रसिद्ध नाटक ( 105: ) की प्रखावना
शकुन्तछाकी ही प्रेरणा है । िंदुर्जीकि गीत-काव्येपिर प्रो ०
दीरेनका गत है कि प्प्रीक साहित्यकी छुकान्त और जप्ुकान्त
दोनों प्रकारकी कविताएँ दिंवू गीत-फाव्यंकि सगपुख पराख
हं ।' गीतगोविन्दकों पढ़कर सन्त्रपुस्थ से होना किसीके लिये
जराग्गव है । गेगवूतकि गारेगें शरीफाउच ( 10 ) में
छिला ह--'्यूरोपियन राहिल एराका जोए नहीं 1” कथा
सादिस्यों शीएलपिंसटनके गतानुसार पिंदू निश्र-शिक्षक है |
भब . दर्धानकों छोजिये ।. गेनसगूलर . ( 110
फाशा1110' ) जेशी निद्वानूने कहा पि---पपिंदू-जाति
दार्यनिकोकी जाति है ।* छा० टप ( 107. 1001 ) कइते
हैं कि प्यूरोपियन दर्शन ्िंवू-दर्शनका अत्यन्त ऋणी है |?
प्री० गोल्डरटवार ( 1१01, (०त800० ) को तो
सब दर्यानका तरत हिंदू-दर्यानेंगिं मिलता है । सर गोनियर
पिछियग्सके अनुसार पिधागोरस और प्लेटो--दोनों
अपने पुनर्जन्गराग्यन्पी प्रसिद्ध* सिद्धान्तीक्रो लिये भारतीय
दर्शनों आत्यपिक प्रभावित हैं । प्राचीन पश्चिगीय दार्शनिक
ही नहीं) गद्कि आधुनिया विश भी --शीर विशेषता आजफों
यूरापियन जोर जागरिका दार्शनिक जगत. भारतीय
दर्शन बहुत प्रगाधित है । स्वागी रागतीर्थ और स्वासी
विमेकानन्दके पर्यटनने तो. जगेरिकाकों थिशुरः भारतीय
दर्दानकें बीच लावार खड़ा किया है ।
यह तो हुई दर्दानकी बात; पर विशञानकी कोटि
भी प्राचीन भारत और हिंदू-संरतिने बहुत बुछ दिया है ।
पहले शिकित्ाशाख्रपर दृष्टिपात कीजिये । लाई शिम्पथिल
( 1,0०6. ताक? ) ने जो सन्, १९०५४ गद्रासके
गर्वनर थे; कहां था; 'शिकित्सा-निशानकी जस्मशूमि
भार है । यहींते पहले शरबयालीनि शो गीखा और
१७वीं शताब्दीके अन्तों यूरोपियन निकित्सकोंने इसे
जरबवाठंशि सीखा ।” शल्य-व्विकित्सकि बारें शि० मैनिय
( )ाए, पता ) गे लिला हि, 'िंदुर्भीकि शरगसग्बन्पी
यम्त्र अत्यन्त तीम छुआ करते थे । उनके द्वारा एक बालकों
भी दो बराबर शार्गे्ि बॉटना अत्यन्त सरल था |?
गणितरं भी दिंदुआऑकी देन बेजोड है । बासावरों
इस निशानको इतना उन्नत गरनेका श्रेय इन्दीकों दै ।
शि० मैनिय ( फए. 00000 ) लिखते हैं कि
प्ञरनीनि जद्ंगणित पिंदुअंसि सीखा जोर यूरंपचालेंनि
हरे आरनोसि छिया ।” सर गोनियर सिलियन्सने कथनातुसार
बीजगणित भी जखोंने ंदुर्जासि सीखा |. ज्दतक
'रेखागणितका प्रश्न हि; एतना ही कदना पर्याप्त होगा कि
पीथागोरराका ४७ वो यारग रिंदुअनि कई शताश्दियों पूर्व दी
हल नर दिया था ।
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