कल्याण हिन्दू सन | Kalyan Hindu San

Kalyan Hindu San by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संख्या २1] ५ जगछुरा फिंदू % ९१७ न्ाक्षशिला» श्रीपन्य और फटकंक्ति निश्वनिधालय छात्रॉसि परिपूर्ण शा मरते में । जदोतिक गापाका प्रश्न है दरों छान बरेठेंटारग ( 127, करा फाकाछुाएं ! और बाप ( फ़ेणु न चिद्याननि भी उुसानाण्ठर स्वीफार किया है कि 'संरठत ही पक ऐसी भागा शी» जो मिश्गरं प्रयछित थी और यही सागर भारतीय शर यूरोपियन ( 1परते०ैपाएफूलएा ) गापार्जोकी जननी 'भी है । हिंदु्कों अक्षर और शापाशान जनादिकालमे है और ईसाके २४०० नर्प तथा ए्रादीगकि ८०० चर्प पूर्णती पछिसी पुखकेंतक पायी गयी हूँ |? जब लीजिये एंदुअंकि साहित्यकी । जर्दोग्रिक नेदका 'डश्न ऐ, सभी निद्यानेगि उसे ,रार्वशरेष्ठ गाना है | प्र ० पीनरागूछर | न ) वश धलि' ) ने बाद हि कि इसकी सगानताएं किम गे अगतक नुछ थी नहीं दिया ।* प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनि' हक ( प०णफ़ााए ) ने जय श्रृग्वेदकों देखा तो. बह ' भाभयंति सिवा उठा कि नल इसी देनके दिये पश्चिग पूर्षका रादा श्राणी रंद्गा ।* यदि गेदकी प्रद्यंसासं पश्चिंगी पिदानेंकि वि्वारंकी एक-एक पुचि भी लिखी जाय तो एक र्वतन्त्र पुखाक प्ररतुत दो राकती है । प्रसिद्ध व्याकरणशाख्री तर मोनियर विलियम्स ( 817 00 एएप1100008 ) ने पाणिनिका व्याकरण देखकर कहा--'इससे गढ़कर बिशने व्याकरणकि नियग कभी बनाये ही नहीं । इसका पवानएक सूत आध्र्यनकित कर देता ( ।' काव्य बिश्के किसी राष्ट्रने ऐसा साहित्य नहीं उत्पपा किया; जा रागायण फ् ई डा सगानता बार सके । मैदांकि अनुसादक प्रिन् ।णिपिकें( 0000 ) ने रागायणके बारेगे लिखा ह--गीखखके किसी थी काव्यों साबित्त और मैतिकताका ऐसा राशिगश्रण नहीं पाया जाता । रागायगकी सगानता दोगर- रय्वित तीन इखियर' और गहाभारतकी समानता बारह लियए' भी नहीं कर सकते ।* भारतीय'नाट्यदास्रपर सर विलियग नोन्स ( 51 फषफा लात ) ने लिखा है कि ध्गारतीय नाटकॉकी सगानतारं शाज विश्वके उन्नततग राष्ट्रेकि नाटक थी नहीं आ सकते ।* जभिशानशानुन्तलकं पढ़वार तो जर्नीका प्रसिद्ध कवि. गेटे ( (00100). गदूगद ऐ उठा जौर उसने खयं॑ भी पक कविता लिश दी । उसके प्रसिद्ध नाटक ( 105: ) की प्रखावना शकुन्तछाकी ही प्रेरणा है । िंदुर्जीकि गीत-काव्येपिर प्रो ० दीरेनका गत है कि प्प्रीक साहित्यकी छुकान्त और जप्ुकान्त दोनों प्रकारकी कविताएँ दिंवू गीत-फाव्यंकि सगपुख पराख हं ।' गीतगोविन्दकों पढ़कर सन्त्रपुस्थ से होना किसीके लिये जराग्गव है । गेगवूतकि गारेगें शरीफाउच ( 10 ) में छिला ह--'्यूरोपियन राहिल एराका जोए नहीं 1” कथा सादिस्यों शीएलपिंसटनके गतानुसार पिंदू निश्र-शिक्षक है | भब . दर्धानकों छोजिये ।. गेनसगूलर . ( 110 फाशा1110' ) जेशी निद्वानूने कहा पि---पपिंदू-जाति दार्यनिकोकी जाति है ।* छा० टप ( 107. 1001 ) कइते हैं कि प्यूरोपियन दर्शन ्िंवू-दर्शनका अत्यन्त ऋणी है |? प्री० गोल्डरटवार ( 1१01, (०त800० ) को तो सब दर्यानका तरत हिंदू-दर्यानेंगिं मिलता है । सर गोनियर पिछियग्सके अनुसार पिधागोरस और प्लेटो--दोनों अपने पुनर्जन्गराग्यन्पी प्रसिद्ध* सिद्धान्तीक्रो लिये भारतीय दर्शनों आत्यपिक प्रभावित हैं । प्राचीन पश्चिगीय दार्शनिक ही नहीं) गद्कि आधुनिया विश भी --शीर विशेषता आजफों यूरापियन जोर जागरिका दार्शनिक जगत. भारतीय दर्शन बहुत प्रगाधित है । स्वागी रागतीर्थ और स्वासी विमेकानन्दके पर्यटनने तो. जगेरिकाकों थिशुरः भारतीय दर्दानकें बीच लावार खड़ा किया है । यह तो हुई दर्दानकी बात; पर विशञानकी कोटि भी प्राचीन भारत और हिंदू-संरतिने बहुत बुछ दिया है । पहले शिकित्ाशाख्रपर दृष्टिपात कीजिये । लाई शिम्पथिल ( 1,0०6. ताक? ) ने जो सन्‌, १९०५४ गद्रासके गर्वनर थे; कहां था; 'शिकित्सा-निशानकी जस्मशूमि भार है । यहींते पहले शरबयालीनि शो गीखा और १७वीं शताब्दीके अन्तों यूरोपियन निकित्सकोंने इसे जरबवाठंशि सीखा ।” शल्य-व्विकित्सकि बारें शि० मैनिय ( )ाए, पता ) गे लिला हि, 'िंदुर्भीकि शरगसग्बन्पी यम्त्र अत्यन्त तीम छुआ करते थे । उनके द्वारा एक बालकों भी दो बराबर शार्गे्ि बॉटना अत्यन्त सरल था |? गणितरं भी दिंदुआऑकी देन बेजोड है । बासावरों इस निशानको इतना उन्नत गरनेका श्रेय इन्दीकों दै । शि० मैनिय ( फए. 00000 ) लिखते हैं कि प्ञरनीनि जद्ंगणित पिंदुअंसि सीखा जोर यूरंपचालेंनि हरे आरनोसि छिया ।” सर गोनियर सिलियन्सने कथनातुसार बीजगणित भी जखोंने ंदुर्जासि सीखा |. ज्दतक 'रेखागणितका प्रश्न हि; एतना ही कदना पर्याप्त होगा कि पीथागोरराका ४७ वो यारग रिंदुअनि कई शताश्दियों पूर्व दी हल नर दिया था ।




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