भारतीय दर्शन का स्वरुप | Bhartiya Darshan Ka Swaroop
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.74 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सारतीय दर्शन का स्वरुप ५ ऋषियों की ये अनुभूतियाँ व्यक्तिगत होने के कारण भिन्न मित्र होती हूँ । ये भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से अनुमूत है । परन्तु है ठो सभी एकमात्र परम तत्त्व के मना म सम्बन्ध की अतएव इनको समन्वय की दृष्टि से देखने से इनमें मा एक प्रकार से सोपान-परम्परां रूप में परस्पर सम्बन्ध देख पड़ता है। थे विभिन्न अनुमूतियाँ हमें उपनिपदों में मिलती हैं। उप- निपदु ही भारतीय जात का तथा दाशेनिक विचारघाराओं का मूल-प्रत्य है । ऐसा अनुमान किया जाता है कि जिजञासु लोग अपनी अपनी इंकाओं को लेकर शषियों के समीप आते थे और ऋषि लोग एक-एक कर के उनकी शंक्राओं को तकें-वितर्क लया अपनी अनुभूतियों के द्वारा दूर कर देते थे तभी परम तत्त्व सॉट्रॉका के दास्तविक स्वरुप का परिचय उन लोगों को भिछता था। ये विचारधाराएँ उपनिपदों के विषय है ये ही उनकी विशेषताएं है। में शंकाएँ तथा इनके समाधान किसी एक क्रम से नहीं होते थे । इसलिए उप- निपदों में परवर्त्ती शास्त्रो की तरह कोई भी विचारधारा हमें एक किसी भ्रम से महीं मिलती । तत्त्व के स्वरूप क। विभिन्न रुप से भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से प्रतिपादन तो सभी उपनिपदों में हमें मिलता है । साया की दिशेष-दादित बा विस्तार प्राय. उन दिनों इतना अधिक नहीं था । अतएव जिज्ञातुओं का अन्त.करण इतना मल्नि न था जितना प्राप आधुनिक काऊ में है। यद्दी कारण मालूम होता है कि उपनिपदों के समय में जिशासुओ वो तत्त्व के सभी स्वरूपों को स्वय समभने में कोई विशेष वाधा न होठी थी । ये उन्हें दर्शनों के आसानी से समम लेते थे । अतएव उपनिपदो में सभी विचार- वर्गोकरण की... धाराओं के रहने पर भी विचारों के क्रमवद्ध वर्यीकरण की भावश्यकता अपेक्षा मे हुई । उन्हें तत्व के सम्बन्ध में भिष्न हप्टि से दिये गये आशेपो के समाधान करने का तया प्रतिपसियों के साय तइं-वितऊ करते का दोई विशेष अदसर न सिलां इसलिए उपनिपदों मे बह गये तत्व के स्वरूप का विश्छेषण कर शिन्न-मिभ्र अप से पूथदू-दुषर उनके वर्गीकरण बरने वा प्रयोजन पहल नहीं हुआ । दिपयो वा वर्गीकरण तभी होता है जब उनके सममने में बढिनाई होती है अपवा अन्य भी कोई प्रयोजन हो । जिस प्रकार धर में अनेक प्रकार के पुद्ध की सामय्ौ के रहने पर भी कोई दुद्धनाल के दिना उन वस्तुओं को एक ऋस से मुमज्जित नहीं करता और सभी सामग्री जिना किसो क्रम वे अनेक रथानों में पढें
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