स्त्री दर्पण | Stri Darpan

Stri Darpan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३३ ) प्रार्थना । ( श्रीमती रामप्यारी इलाहाबाद) प्रिय चहिनों, झाइये पहिले हम दीनानाथ के शरण में हाथ जोड़ हे ् 4» ९ के फर प्राथना करें ताकि झाज हम पर जो घिपत्ति पड़ रदी हें भगवान्‌ शीघ्र अन्त करें ॥ सही नाथ दम अति दुख पाये , शरशा में तुम्हरे आये । नेन निद्दारि रूपा प्रभु करियो , भारत विपाति नशांयें ॥ उन्नति के ऊँचे चोटी पर , पहुँच पताल समाना | वर्ष सेकड़न प्रायाह्चित कर , फन्दन दुख सम भाना ॥ सींद॒ भविद्या च्ं दिश छाइ , हाहाकार.... मचायो । फ्रेग महामारी हंजा हा, सुख वाये हा धायो ॥ कुष्ट दरिद्रता. तन व्यापी , भारत कस्पित कीन्दो । ः #७ ७ + की» ८ स्वार्थ फूट निज दांव देखिके , चला कटारी दीन्हो ॥ जा भारत कर टेंर खुनत प्रभु , भगर नर तनु धारयों । सांत्वना सच विधि पशु देफे , मक्तन विपति संहारयो॥ घहि भारत के धिपति में प्यारे ; मौन कहां हो घारे | कब थनि पुत्र आये माता के , खोले हों गोद मभारे ॥ जीहि भारत कहें स्वर्ग से बढ़ि के , जन्म भ्रामि निज मानयो । काहे. नाथ घिलम्ब लगायों ; लाज न हिय में झान्यो ॥ निज जन्म भूमि कर हीन दशा प्रभु , देख सकतु हो केसे । दीन मलीन . दीन झायोचत्ते , दुख नाशट्ट दो जेसे ॥ कर जार के दासी टेर करतु है , मातृभमि गर फांसी । झाइ छोड़ावह दें दीना निाधे , नाहित तुम्दरी हँसी ॥ म्रभाती । स्वदेश प्रेम गग, वह फ्रयों न नहाश्रो । भाव भूमि तीथे जान पुण्य मई तपों खान, कि #५ कक, घन्य ऋषि सन्तान हम, जिन जन्म हिन्द पाओं |




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