साहित्य निबन्धावलि | Saahity Nibandhaavali

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Saahity Nibandhaavali by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द साहित्य निवन्भावलि वक्त मैंने विश्वस्तसखूत्रसे सुना था कि वहाँ एक मठमें झ्ाचाय दोपकर ओीजान ( ६८२-१०५४ ई० )की लिखी. पुस्तकें विद्यमान हैं । श्राचाय दीपंकर स्वयं ह्विन्दीके कवि थे श्रोर उनकी वज़ासन वज्धगीतिका तिब्बती श्रनुवाद अब भी तनजुूरमें सुरक्षित हे । जिन इस्तलेखोंको हम किसी पक संग्रहालय में नहीं जमा कर सकते उनके प्रतिचित्र जमा किये जा सकते हैं। दशकों श्रोर साहित्यप्रेमियोंके लिये कितने श्रानन्दकी बात होगी यदि वे ग्यारहवीं शताब्दीके दोपंकरसे लेकर विद्यापति केशव तुलसी बिद्दारी मतिराम बूषण सदल मिश्र मुंशी सदासुख लल्लूलाल पद्माकर हरिश्चन्द्र तथा श्राजकलके मी दमारे लब्धप्रतिष्ट साहित्यिकोंके हस्तलेखों या उनके प्रतिचित्रोंको देखने पावें । वतमान सादित्यिकोंके ऐसे लेख सुलभ हैं किन्तु इस शताब्दीके अन्ततक वे भी दुलभ दो जायेंगे । हिन्दी-सादित्य-सम्मेलन स्रपना संग्रहालय बनवा रहा है । श्राशा है वद इसकी श्रोर ध्यान देगा । दूसरी साहित्यिक संस्थाश्रॉंको भी श्रपने-ग्रपने प्रदेशमें इस श्रोर ध्यान देनेकी श्रावश्यकता है । उच्च साहित्य-परिषदुका श्रावश्यकता दिन्दीभषा-प्रे मियोंकी कितनी ही सभा-समितियाँ देशके भिन्न-भिन्न स्थानोंमें मोजूद हैं आर श्रच्छा काम कर रही हैं । श्रावश्यकता हे पुराने तामिल संगमकी भाँति एक ऐसी हिन्दी साहित्य-प रिषदूकी जिसके सभासद्‌ होनेके लिये उच्च कोटिका हिन्दी लेखक होना श्निवाय हो । इस परिषद्‌ में राजनीतिक प्रभाव या विश्वविद्यालयकी डिप्रियोंका खयाल बिलकुल हटाकर लेखककी एक या अ्रनेक कृतियोंका विशेष प्रत्यवेक्षण करके ही उसे सभासदू बनाया जाय । प्रत्यवेत्तणका काम पह़िले तो तीन या पाँच विशेषज्ञोंकी उपसमितिको सौंपा जाय । उसकी सिफारिशके साथ नाम परिषद्‌ के सामने पेश किया जाय श्रौर उपस्थित तथा श्रनुपस्थित दो-तिद्ाई सभासदोंकी सम्मति होनेपर उसे स्वीकृत किया जाय । श्रोर बातोंकी श्रनुकूलता देखकर झच्छा हो यदि परिषदूका स्थान दिल्‍्लीमें दो ।




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