आज की राजनीती | Aaj Ki Rajniti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aaj Ki Rajniti by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

Add Infomation AboutRahul Sankrityayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जी . जि मी राजवीति भंगवानदास--आशा है, आप किसी की नियत पर आक्रमण महीं करेंगे, पढ़ा तो होगा कि हमने भारतवर्ष को “सर्व प्रभुस्वसंपन्न भणराज्य घोषित कर चिया है। जल्दी ही हमारे देश में कहीं भी इंगलेंड के राजा का कोई भी चिह्न देखने में नहीं आयेगा । न हमारे सिंक्के पर, न हमारे टिकटों पर उसकी मूर्ति रहेगी और न मोट या स्टाम्प-कार्गजों पर ही । हम अशोक-चक्क को राज्य-लांछम बना चके हैं, अद्यीक-सिह हमारी राज-मुद्रा पर आ चुका है । महीप--यह सब होते हुए भी जिस राष्ट्रमंडल का मारत अंग है, उसका सब कास-काज इंगलेंड के राजा के नाम से होगा । भगवानदास जी, भोलेपन की बात छोड़ें । छोड़ दीजिये मूर्तियों और मुद्राओों की बात; ब्रिटिश राष्ट्रमंडल को सदस्य बनकर भारत ने एदिया की स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेना छोड़ दिया । मलाया के रबर और टिन को अपने हाथ में रखने के लिए जापानियों के सामने फ्तलन छोड़कर भागने वाले अंगरेजों ने आज फिर वही तानाशाही कायम करनी चाही है । वहाँ के लोग स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं, और अंगरेज कम्युनिस्ट कहकर उन पर गोले-गोलियों की वर्षा कर रहे हैं । वहाँ के बारे में भारत ने क्रूर मौन धारण कर रखा है । खोजीराम--क्र मौन तो नहीं रह सकते महीप जी, मलाया में गणपति की फांसी पर भारत-सरकार ने अपना विरोध प्रकट किया था । महीप--विरोध प्रकट किया, किन्तु उसे बचा नहीं पाये । भंगरेजों ने किसी शिखंडी का नाम लेकर छुट्टी पा ली । लेकिन, वहाँ एक गणपति नहीं, एशिया के हजारों गणपति अंगरेजी शासन की क्ररता के शिकार हो रहे हैं; वहाँ कितने ही जलियाँवाला बाग रचे जा रहे हैं । क्या हमारे नेताओं ने भंगरेजों से दो टूक कहा, कि मलाया के स्वदेद-प्रेमी हमारे एशियाई भाई हैं, उनके खून से हाथ लाल करने वालों के साथ हम हाथ नहीं मिला सकते । भगवबानदास--यह में मानता हूँ कि मलाया में अंगरेज पहले ही जैसा अत्या- चार कर रहे हें, कितु दुनिया में जहाँ-जहाँ अत्याचार हो रहा हो, सभी जगह हम ढ गाल बनने के लिए तो पहुंच नहीं सकते । महीप---एक मलाया की ही बात नहीं है भगवान भाई, बर्मा में अंगरेजों के अपने तेल के कुएँ, खानें और क्या-क्या स्वाथे हें । वह नहीं चाहते कि बर्मा उनके प्रभाव से मुक्त हो जाय । बर्मा में इसी की लड़ाई है । एक पक्ष अंगरेजों के स्वाथ॑ को अल्ुण्म रखने की कोशिश कर रहा है और दूसरा वर्मा को वास्तबिक रूप में स्वतंत्र बनाना चाहता है । आज तक दुमिया की राजनीति में यह सदाचार मान जाता था, कम-से-कम कहने के लिए, कि गुहयुद्ध में बाहर की शक्तियों को हस्त-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now