राजनीति से लोकनीति की ओर | Rajniti Se Lokniti Ki Aur

Rajniti Se Lokniti Ki Aur by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhaveजयप्रकाश नारायण - Jai Prakash Narayanजे० सी० कुमारप्पा- J. C. Kumarappaदादा धर्माधिकारी - Dada Dharmadhikariधीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdarनवकृष्ण चौधरी - Nav Krishna Chaudharyपं. जवाहरलाल नेहरु - Pt. Jawaharlal Nehruशंकरराव देव - Shankarrav Dev

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आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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जयप्रकाश नारायण - Jai Prakash Narayan

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जे० सी० कुमारप्पा- J. C. Kumarappa

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दादा धर्माधिकारी - Dada Dharmadhikari

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धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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नवकृष्ण चौधरी - Nav Krishna Chaudhary

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पं. जवाहरलाल नेहरु - Pt. Jawaharlal Nehru

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शंकरराव देव - Shankarrav Dev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोक-क्रान्ति की लचमण रेखा ` १७ लोकसत्ता के लिए. ग्रावश्यक लोकनीति श्र लोकचारिश्य का विकास नहीं कर सकती । यद्द लोकनैंतिक आन्दोलन वी मूल प्रतिष्ठा है । उसका अधिछ्टान राज्यसत्ता नदी; लोकसत्ता रोगा । पक्षबाद ओर सत्तावाद की नहर अतएव लोकक्रान्तिनिष्ठ सभी कार्यक्तीौ से हमारा साग्रह निवेदन है किवे भूदान-कार्य क तरक्की देने के मोह से भी चुनावों से किसी प्रकार का सक्रिय भाग न ढें । लोककान्ति की गगोची के प्रवाह को ण््त्वाद्‌ श्रौर सत्तावाद्‌ की नहर में हरगिज न मोड । आज उनके लिए अपनी मर्यादा का पालन करना मुश्किल हो रहा हैं । चुनाव का ववडर जैसे-जैसे तेज होने लगेगा, श्रपते कदम 'घरती पर जमाये रखना उनके लिए. और भी मुश्किल होता जायगा | जिन लग ने भूदान कै कार्य मे तन, मन या घन से मदद पहेंचायी है, उनके लिए, लिहाज श्ौर मुरौवत होना स्वाभाविक हे । लेक्नि कृतश्ता के ठिए, कोई, अपने सतत की चि नदीं देता । छृतनता के लिए. कोई व्यक्ति आपने इंसान की कीमत नहीं देगा, चोड स्री अपने सतीत्व का सौदा नहीं करेगी और कोई राष्ट्र श्रपनी श्राजादी की छुवानी नहीं करेगा । उसी तरह लेक्नीति को ही जिसने लोककाति का श्राधार माना है, वह राज्यनीति की बेटी पर लोक्नीति का चलिंदान नहीं करेगा । इस सावंजनिक च्यासपीठ की सयांदा भूदान-घादोलन एक सर्वजनन्यापौ आन्दोलन है पश्ननिष्ठ राव्यनीति में विश्वास र्खनेवालों के लिए. भी उसमें उतना दी स्थान है, जितना तथस्थ नार- रिको के लिए है। उसमें सबका ग्रावादन रै । मन्ति-मडल ओर विधान-तमार्यो के सदस्यों से लेगर प्ष-संस्थास्रों के सदस्यों तक सभीका उसमे सविनयं तौर सायह निमेत्रण तथा स्वागत है] ्रपनी-त्रपनी प्रतत राजनीतिक पद्या को सेमाल्ते हुए चोर झपने-ग्रपने पल की प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए इस सार्व- जनिक व्यार्पीट पर विनोग उनका श्रावादन करते है । वे भले ही चुनावों के संयोजन श्रौर संचान्न में झपनी-श्रपनी रुचि श्ौर निश के श्रनुखार भाग हें । उने इतनी दी ग्रपेना है कि भूमिदान-यज-्रान्दोल्न के मच का उपयोग पश्ष- नं




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