आचार्य रामचंद्र शुक्ल | Aacharya Ramchandra Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श७ याचाय रामचद्र झुक घउसन जाग्मम से ही था शेर अत्त तक. पना रदा। पियें बाल इस इयास स्वीर स्यीसी का रोग हों रया था । रोग वी पदस्थ से भी पद स्थगन सी छूट हि क पता या | देखा गया है कि ये स्सें जानें थे और पढें ला थे 7 लगमय पद्धद सोलह यप थी नमस्या में झकर जी को ऐही सादित्पिक मिन मेटल मिर गइ निसस निरन्तर सादिसिवचा हुआ करती था । पद शुकर जा आने को दिदी को एक लेयक समझने रगें। प्रेममन थी छापा स्मूि सम सख से आपने एफ स्पन पर रिया देन रिंद व की सयहथा तक पहुंचने पढ़ें चने तो समय दिला प्रेमियों कि एव प्यासी रूइरी मुझे मिल गइ | निनम श्रीयुन बाशीम्साद जी ज्ञायसदाल वार अययानदास जी डालना प० यद्रीनाथ दोड प० उमाशंकर ईिवेदी मुख्य थे । दिल्दी के नए पुराने लेयकों की चर्चा बरायर इस सडगी मे रद करती थी । से मी झव सो को एक लखक मानने रा था हम लोगा की वातचात मात्र हित पढने की दिदी में हसा चरती थी लिसमे निरदेट दस्थादि साव्द आाउ उें ये? घर इनका सूएत पर दिन्दा का शक झरक मारने लगा था । एक यार इनने पिता जी ने सपने मुद्दे वे एक सय लत साइय से इनका परिचय देने हुए. यद्दा-ाइन्द दिन्दी का यदा सीक है ह चट जताय मिला बेपयों बताने का जरूरत नहीं । में तो इनया सूरत देखते ही इस यात में पाक हो गया रे ( प्रिमपन की छाया स्टूति ) बह द्र रा मुसलमान था सादित्य निमाग की सर शुकर जी यी प्रदत्ति याल्पन से ही थी । कहां जता है वि भरने सादिस्यिक सीपन के प्रारम्भिक कारम खबर जी थी रामर शरीब चने में थयत्यछन बहुत घसायित हुए। ये साई पड़ी में शुवर थी थे नर में दी गदने थे । वे जतत गौर चण के थे जोर अपीम सानें थे | ममयत भंग उनने की मरगा परोशन शुररती को उद्दी से मिला । परनु ये मांग ऊे मुखद कमी नदी हुए । श्र रासगरोर चोरे अैंगरेजी मापा के प्रभाइ पढित तथा पैंगग्जा से टिंदी सीर रिंदी से यैंगोजी में यनुराद करने स परम प्रयीण ये । चोद दिंदी योलता जाता जौर वे सैंगरेती मैं नुर्त अनुबाद करते जे । सैंग- देना से डिटी में जनुयाद की भी ऐसी ही गति थी। कॉशिव रचना




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