टनाटन | Tanatan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : टनाटन  - Tanatan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बेढब बनारसी - Bedhab Banarasi

Add Infomation AboutBedhab Banarasi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[रद्द गये निधन मनुष्य हूँ । सवा रुपये तो मेरे किये हो नहीं सकते। दो-तीन दिनों में जुटा सकता हूँ । जहाँ आपका तकिया हो ले आ सकता हूँ । बाबाजी बोले बेटा में तो रमता जोगी हूँ । मगवानकों कुछ तेरी सहायता करनी शी तू मुझे मिल गया । पूजा करनी होगी नहीं तो में पैसे ठेकर कया करूँगा । में तो माँग-जाँचकर एक समय खाता हूँ । हरिदिरिको सीधाके साथ आठ जाने सिछें थे । बोला--बाबाजी इस समय मेरे पास तो कुल अआाठ जाने हैं । बाबाजीने एक सिनटतक आँख मूँदकर सोचा । बोछे गुरुऔकी आशा है कि श्ाठ आनेमें ही पूजा करो और इसकी मदद करो । शोलीमेंसे एक कागजकी पुड़िया निकाली और बोले--देख किसी कु्एपर इतवारकों खड़ा रह । जब कोई स्त्री पानी भरनेक्रे लिए गगरी लाये उसकी गगरीमें इस जंतरकों डाल दे । गगरी तुस्त फूट जायगी । उसका मुँह उठाकर लेते आना । उसमेंसे जिसे तू. देखेगा तेरे पास दौड़ा चला आवेंगा । बाबाजी अठन्नी और मिसिरजी यंत्र लेकर चलें । मिलिर्जीकी गँति तेज हो गयी जेसे रक्तके ऊंचे दबाववालोंके हृदयकी चेहरा खिल गया जैसे सेमलका फूल । घर आये । रविवारकी बार जोहने लगे । अन्तमें रविवार भाया दी । और वह चढे पनघटकी ओर । अधिकांश लोगोंको उन्होंने सलपर-ही पानी भरते देखा । निदान थोड़ी दूरपर एक कुआँ दिखाई पड़ा । प्रस्तु वहाँ कोई था नहीं । वहीं यह बैठ गये कि कुछ देरतक ब्िशाम कर छे और यदि कोई स्त्री आ जाय तो यंत्रका काम भी कर लिंथा जाम हुरिहरे थे भाग्यवास । तीन ख्ियाँ उसी ओर था रही थीं सीनोंके रब




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now