सनत्कुमार चक्रिचरित महाकाव्यम | Santkumar Chakricharit Mahakavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.21 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ ] रहता था । उस पण्डित को जिनप्रियोपाध्याय के शिष्य श्री जिनभद्र सुर (जिनदास ) ने जिनपतिसुरिजी के साथ दास्त्राथं करने को उकसाया । प० मनोदानन्द ने दिन के दुसरे पहर पौषघशाला के द्वार पर शास्त्रार्थ का पत्र चिप- काने के लिये झ्रपने एक विद्यार्थी को भेजा । दिन के दुसरे पहर के समय उपाध्रय में ध्राकर वह पत्र चिपकाने को तैयार हुमा । श्री पुज्यजी के दिव्य घर्मरुचि गणि ने विस्मय-वद् होकर झलग ले जाकर उससे पुछा-- यहां तुम कया कर रहे थे । ब्राह्मण बालक ने निभेय होकर उत्तर दिया कि-- राजपण्डित मनोद।नन्दजों ने श्रापके गुरु जिनपतिसुरिजी को लक्ष्य करके यह पत्र चिपकाने को दिया है । उस विद्यार्थी की बात सुनकर हंसते हुए घमरुचि गणि ने कहा--रे श्राह्मणण बालक हमारा एक सदेदा पण्डितजी को कह देना कि श्री जिनपतिसुरिजी के शिष्य घमें- रुचि गणि ने मेरी जबानी कहलवाया है कि प० मनोदानन्दजी यदि श्राप मेरा कहना मानें तो श्राप पीछे हट जायें तथा शभ्रपना पत्र वापिस ले लें भ्रन्यथा श्रापके दाँत तोड़ दिये जायेगे । श्रभी न सही किन्तु बाद में श्राप श्रवश्य ही मेरी सलाह का मूल्य समभेंगे । उसी विद्यार्थी से पं० मनोदानन्द के विषय में जानने योग्य सारी बाते पूछकर उसे छोड़ दिया । घ्मरुचि गणि ने यह समस्त वत्तान्त श्री पुज्यजी के आगे निवेदन किया । वहां पर उपस्थित ठ० विजय नामक श्रावक ने शास्त्राथे-पत्र सम्बन्धी बात सुनकर श्रपने नौकर को उस पत्र चिपकाने वाले विद्यार्थी के पीछे भेजा श्रोर कहा कि-- तुम इस लड़के के पोछे-पीछे जाकर जाच करो कि यह लड़का किस-किस स्थान पर जाता है । हम तुम्हारे पीछे ही झा रहे हे। इस प्रकार झरादेश पाकर वह नौकर उक्त कायें का भ्रनुसन्घान करने के लिये लड़के के चरण-चिह नों को देखता हुथ्रा चला गया । श्रनेक पण्डित-प्रकाण्डों को शास्त्राथं में पाड़ने वाले प्रगाढ विद्वान यशस्वी श्रीजिनपतिसूरिजी ने झ्रपने श्रासन से उठकर श्रपने श्रनुयायी मुनिवरों को कहा कि-- दो।घ्र वस्त्र-घारण करो श्रीर तंयार हो जाशो शास्त्राथे करने को चलना है । स्वय भी तैयार हो गये । महाराज को जाने को तैयार देखकर जिनपालो- पाध्याय भ्ौर ठ० विजय श्रावक कहने लगे भगवन् यह भोजन का समय है साधु लोग दूर से विहार करके श्राये हैं इसलिये श्राप पहले गोचरी (भोजन) करें । बाद में वहां जायें । उन लोगों के अ्रनुरोध से महाराज भोजन करके उठे । जिनपालोपाध्याय ने पूज्यश्नी के चरणों में वन्दना करके प्राथ॑ता की-- १ यु० गुर्वावली पृ० २० के घ्ननुसार इनकी दीक्ष। स० १२१७ में हुई थी । इनकी रचित झपवगनाममालाकोष प्राप्त है 1
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