पाक - चन्द्रिका | Pak-Chandrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र७ ) करके नाना श्रकार से उन्हें पवित्र कर, उनको सुरुचिकर बनाने में यह देश झन्य देशों से अधिक ज्ञानी माना नाता था । किन्तु दुःख का विषय यदद दे कि छाज विजातियों के ऑआचार-व्यवद्दार की छाप पढ़ जाने के कारण इस पवित्र हिन्दु-जाति का वह प्राचीन गौरव नष्ट हो रहा है। हमारे 'झाषंगणों में जिस प्रकार से चव्य, 'चूष्य, लेदम, पेय प्रशनति नाना भाँति के उपादेय खाद्य व्यवद्दार करने की प्रथा देखने में छाती है, प्रथ्वी पर डन्य किसी जाति में इस प्रकार की पाक-प्रशाली देखने में नहीं छाती । डापने स्वास्थ्य के छनुसार खाद्य-द्रव्यों की व्यवस्था कर, पाक बनाने में इस देश ने उन्नति की थी। भारत में छन्य प्रदेशों की अपेक्षा प्रकृति में विशेष मिननता है। इसी कारण पाक-विद्या के आचार्य ने बड़ी सावधानी से पाक-प्रयाल्ली के सम्बन्ध में उल्लेख किया है । 'अथांत्‌ हमारे देश में मध्याह्व में पिच का प्रकोप 'धिक हो जाता है। पित्त की वृद्धि होने पर नाना प्रकार के रोगों की सम्भावना दोती दै। इसीलिए इस देश में सब से पहले दी पित्त-नाशक तिक्त-रस विशिष्ट पदार्था' की व्यवस्था का इतना झआादर देखने में छाता हे। तिथि- विशेष में चन्द्र-सूथ के आकषण से प्रथ्वी के यावतीय पदा्थे के जलीय 'अंश की ब्रृद्धि होती है, इस कारण लिन- लिन पदार्थों के भोजन करने से शरीर में इसका 'छाधिक्य सम्भव हे, तिथि-विशेष में उन-उन द्रव्यों का भोजन करना सूची--२




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