बंदरगाह | Bandaragaah

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Bandaragaah by एच बालसुब्रह्मन्यम - H. Balsubrahmnyamतोफिल मुहम्मद मीरान- Tofil Muhammad Meeran

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तोफिल मुहम्मद मीरान- Tofil Muhammad Meeran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस वातायन के दारा समग्र मानव-जीवन का दर्शन प्रतिभासित होने लगता है। हद दर्जे की ईमानदारी मानवीय प्रेम पैनी तर्क-बुद्धि और सुधारवादी दृष्टिकोण के साथ मीरान कथा की स्वयं चुनी गई साधना-भूमि में प्रवृत्त होते हैं । तुरैमुगम में वर्णित समाज अंधविश्वासों और दकियानूसी विचारों से जड़ीभूत समाज है आर्थिक रूप से ताकतवर जमींदारों और पूंजीपतियों के चंगुल में फंसकर निरंतर घुटन का अनुभव करनेवाला समाज और नई सभ्यता की रोशनी के लिए अभेदय उस समाज में जीनेवालों के लिए भूख और फाकामस्ती जिंदगी का अंग बन गई है । मजहब के नाम पर अंधविश्वास इनका राजा है। कौमी और दीनी नेता गरीबों के शोषण के लिए एक औजार के रूप में मजहव का इस्तेमाल करते हैं । गरीबों पर जुल्म ठानेवाले प्रवंचकों का समाज स्थायी रूप से ठगी का अपना बाजार नहीं चला सकता । आदमी सदा के लिए अज्ञान और गफलत में डूबा नहीं रह सकता। बाहर की दुनिया की रोशनी-परिवर्तन की प्रकाश-किरणें-इस गांव में भी प्रवेश करती हैं । जीर्ण-शीर्ण हो गए इसी समाज के भीतर से इस घुन को निकाल फेंकनेवाला नया मनुष्य पैदा होता है। यह दूसरों की तरह अरबी में तालीमयाफ्ता नहीं है अंग्रेजी पढ़ा-लिखा है। मजहब-परस्त अरबी तालीम से सिर्फ दकियानूसी विचार पनप पाते हैं। अंग्रेजी शिक्षा ने रूठ़ियों और दकियानूसी विचारों से जूझकर उन्हें मिटानेवाले एक नवमानव को जन्म दिया । यह नया मानव स्वतंत्रता-संग्राम से भी प्रभावित होता है जिसने विदेशी हुकूमत को चुनौती दे रखी थी। यह नव मानव गांवों में जमींदारी के खिलाफ फूटे जन-संघर्षों का पक्ष लेता है और अपने गांव में भी अज्ञान और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाता है। इस नए मनुष्य के उत्थान से पूंजीपतियों और जर्मीदारों के पाषाणी दुर्गों में दरारें पड़ जाती हैं । इस तरह एक समाज-विशेष के मटियामेट होने की संभावना की ओर संकेत करते हुए यह उपन्यास समाप्त हो जाता है। इस उपन्यास में केवल अतीत की कहानी नहीं है बल्कि उस अतीत से निकले वर्तमान की भी कहानी है । वर्तमान को सुंदर और सार्थक बनाने में अतीत में सीखे गए सबक याद आते हैं। यही इस उपन्यास का अनूठापन है। और तुरैमुगम में ही क्यों मीरान के किसी भी उपन्यास में कथानक का स्वरूप बताने के लिए कुछ खास नहीं मिलेगा। घटनाओं की परतें जोड़ते हुए कहानी खींचने में मीरान की कोई रुचि नहीं है । यह तो तीसरे दर्जे के उपन्यासकार का काम होता है। मीरान अपने उपन्यास में कहानी नहीं सुनाते हैं बल्कि जीवन के यथार्थ को सुनाते हैं । दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं के सहारे उनके उपन्यास गठित हैं । जीवन और उसके साथ रची-पची प्रकृति की एक-एक परत और उसकी बारीकी को जब वे तफसील से बयान करते हैं तव पाठक के सामने अनुभव की एक विशाल दुनिया अपनी पूरी सच्चाई के साथ उजागर हो जाती है। मीरान की कृतियों में यथार्थ की जो बुलंदी पाई जाती है उसका यही रहस्य है। पंद्रह




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