सामान्य मनोविज्ञान | Samanya Manovigyan

Samanya Manovigyan by एस. एस. माथुर - S. S. Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोविशान दया है ? डे अपनों योग्यतानुसार सुल्यांकन करता ही है। परन्तु यह मूल्यार्कन किस सीमा तक सद्दी है या गलत है, यह इस बात पर निर्भर होता है कि उसका व्यवहार समकने का ज्ञान कितना विदद या संकी्ण है । व्यक्ति जब अपने को दूसरों के या अपने व्यवहार या मानसिक क्रियाओं के समकने में असफल पाता हैं. तो वहू अधिक वंज्ञानिक और समुचित ढंग से यह जानने को चेप्टा करता है कि हमःरे व्यवहार या मानसिक क्रियाओं के मूल आधार वया हैं ? मनोविज्ञान के विकास का सूलमन्त्र हमे मनुष्य की इसो मावना में मिलता है कि वह अपने तथा द्रसरों के व्यवहार एवं मानसिक क्रियाओ के सम्दन्ध में स्थायी तथा बंज्ञानिक रूप से जानकारी प्राप्त कर सके 1 गतएव हम कट सकते हैं कि मनो- विज्ञान एक ऐसा विपय है जो मानव व्यवहार तथा मानव के अन्तस में होने वाली विभिष्न मानसिक क्रियाओं के सम्बन्ध में मूल प्रश्नों का उत्तर प्रदान करता है। ये मूल प्रइन बया, कँसे और यों का रूप धारण किये होते हैं । मनुष्य कया करते हैं ? मोसे करते हैं? और वयों ऐसा करते हैं ? यही प्रश्न हैं, जिनका उत्तर मनोविज्ञान की विषय-वस्तु बनता है । यहाँ, इसके पूर्व कि हम मनोविज्ञान के विपय-विस्तार, मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाओं, प्रदत्त सामग्री इत्यादि के सम्बन्ध में विवेचन करें, हम मनोविशान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करेंगे । सनोविज्ञान को ऐतिहासिक पृष्ठूमि! धूनान की पारस्रगिक गायांओं में 959०9 दा दर्जन एक ऐसी सुन्दर कु दाती बस्या, जिसके तितसी के समान सुन्दर पंल थे, के द्वारा किया गया है । “९5४८८ आरा का प्रतोर माना जाता था ओर तितली भानव की नए्वरता (०१६४५) का चोतक ।. *?59८५०10टू# जिसका हिन्दी बर्थ 'मनोविज्ञान' है, दो एन्दों है मिलकर इन! है--289८७८५1.०ढ०5 । 5१८४८ का बर्ष बआतमा से होता था. और 1.0605 का अप जिज्ञात से 1 इस प्रझार ?६५८७०!०टूप् का पाड्दिक अप “आत्मा का दिजशान” है। आरम्भ में कइट0108) दाग्द का प्रयोग इन्हीं अयों में किया. जाता था और मनोविज्ञान का इयपन दर्गनशास्त्र के अंग रूप में हो रिया जादा था मनोविज्ञान एक विशुद्ध *विज्ञान के रूर में तो हमारे सम्दुख बहुत थाद में आया परस्तु मनोविज्ञान के आरम्भ का इतिहास बहुत प्रायोन है। लगभग ईसा से सात दाताब्दी पूर्वे यूनान के बुध धनवान नागरिकों के पास इतना अवकाश पा कि दे अपना ध्यान अध्ययन एवं निरीझण की ओर लगा सकते थे । उन्होने राजनीठि एवं यूहु-युद्धों से . अपना ध्यान हटाकर यदद पढ़ा सगाने के लिये दिचार रिया कि मानद- जोदन में श्यायी तत्व बदा हैं? आरम्म में शुद्ध दाशनिहों ने जिन्हें अद्धैहदादी 1. पांड(णद्यी ए3टा:-ह०प56 ० हकुप्पण1 ०,




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