गाड़ीवालों का कटरा | Gadiwalon Ka Katra

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Gadiwalon Ka Katra by चद्रभाल जौहरी - Chdrabhal Jauhariश्री पतराय - Shri Patray

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श्री पतराय - Shri Patray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है । यही कुप्रिन अपने इस उपन्यास में दिखाने का प्रयत्न करता है । और यदद अन्याय किसके साथ १ अवोध बच्चियों के साथ--नो कि सामतौर पर, जैछा कि आप इस उप- न्यास में देखेंगे; चेद्याएँ बनाई जाती हैं । भन्याय किसके साथ उस ख्रीत्व के साथ * जिसका सष्टि में मद्दान उद्देप्य मातृत्व है ! क्या हम सचमुच सम्य और थिष्ट हैं ! अले- क्जैण्डर कुप्रिन अपने इस उपन्यास के हारा दमारे सामने यह प्रदन रखता है । पाठफ- घुन्द, इस उपन्यास को पढ़िए, सोचिए और उत्तर दीजिए... अलेवजेण्डर कुप्रिन का यह उपन्यास सचमुच एक अद्वितीय पुस्तक है, वर्योकि इस विषय पर आज तक ऐसी मद्दान्‌ पुस्तक दुनिया में कोई नहदीं निकली । कुप्रिन ,की कला का तो कदना दो कया | , उसका मुकुूबला कुछ लोग रूस के दूसरे संछार-प्रतिद्धि कहानी - लेखक नेखोव से करते हैं जो कि दायद दुनिया का सबसे अच्छा क्दानी-लेखक था 1 खेर; कुप्रिन चेखोव की बराबरी का हो या कम, परन्तु इसमें तो कोई सन्देद ही नहीं है कि वद्द एक दिग्गज कलाकार है जिसके चित्र योरकी की तरह ही सादे, सच्चे, झदय को मसोस डालनेवाले और भयकर है ऐसे चित्र गायद रूसी कराकर दी खींच सकते है और ऐसा उपन्याष लिखना भी एक रूपी कलाकार का ही काम था । मेरा तो मत है कि जिसकी शात्मा इस उपन्यास को पढ़कर कांप नहीं उठती उसको परमात्मा से आत्मा मिली टी नद्दीं--वहद बिना आत्मा का मनुष्य हे । वह इस सश्ीन-युग की कृति भले हो हो, उस परमात्मा की कत्ति नहीं है जिसकी दर कृति में उसका थोडा-वहुत अंश अवथ्य रहता है | थ . मैंने मा” के अनुवाद की प्रस्तावना में कद्दा था कि इस अनुवाद में जितना मेरा समय गया भर उससे जो शार्थिक दानि हुई उससे अब मेरा छृदय ऐसा कोई दूसरा काम शथ में लेने को नहीं होता, परन्ठु मेरा वह विचार उस दाराबी कानसा हो रहा जो बोतल को सामने देखकर 'एक जाम और” पीने लगता है । अस्त, भाई श्रीपतरायनी ने जब कुप्रिन के 'यामा? के अनुवाद का प्रश्ताव मेरे सानने रखा तो मुझवे इनकार न हो सका । मेंने सोचा, “अच्छा, एक जाम भीर सद्दी । परन्ठु ईदवर से प्रार्थना है कि मुझे इतर दौर का भादी न करे । अनुवाद के सम्बन्ध में सुझे छिफ इतना दी कदना है कि मेंने इस अनुवाद को भी उसी ढंग पर किया है जिस ढंग पर “मा” का अनुवाद किया था । कई स्थानों पर अनुवाद में तुकबन्दियाँ भी की गई हैं जो कि मूल उपन्यास में जो तुकबन्दियां हैं उन्दीं का निकट से निकट अनुवाद ईें। झाशा है, उन ठुकबन्दियों को पाठक कविता की दृष्टि से देखने का प्रयत्न न करेंगे, क्योंकि वह मूल में भी ऐसी दी तुकबन्दियों है जो कि ऐसे स्थानों और ऐसे पानों के द्वारा कद्दी जाती हैं जहदीं ऊँची कविता के लिए नगह' नहीं शोती । मूल उपन्यास का नाम '“यामा” द्विन्दी में कायम रखने से कुछ श्रम का डर था; और मी कई दिक़ातें थीं जिससे उसका एक प्रकार से अचूदित नाम 'गाड़ीवालों का कटरा” दी उचित जेंचा, अतएव अलैक्जेण्डर कुप्रिन का मद्दानू उपन्यास 'यामा” हिन्दी पाठकों की !




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