मनोविज्ञान | Manovigyan
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.73 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सनोविज्ञान श्र चल चश हु व्यवहार के उन परिवर्तनों का भी विस्तृत वणन रहता है जो मोतिक या सामाजिक संपर्क से व्यक्ति में साघारणतः आ जाते हैं । संसार के झन्य प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य शेशव तथा बाल्यकाल में अधिक असहाय दी नहीं होता इस असदाय दशा की अवधि मी अधिक दीघेकालीन रहती है । दूसरों की देखमाल के बिना उसका जीवित रह जाना ही असम्भव है । चह आरम्भ से ही दूसरों के सम्पर्क में रहता है । उनकी देखभाल से उसकी केवल शारीरिक आवश्यकताएँ ही पूरी नहीं होतीं अन्य नैसगिक इच्छाएँ भी विशिष्ट रूप घारण कर लेती हैं । बाल्य- काल में ही बच्चे में बहुत आदतें बन जाती हैं और उसमें विशिष्ट रुचियाँ पैदा हो जाती हैं । स्वमाव की सफलता के कारण परिवेश के सम्पक का प्रभाव बालक पर बहुत गहरा पड़ता है । इसीलिए बालक की प्रवृत्ति के अनुकूल परिवेश होना अत्यन्त आवश्यक है । अनुकूल परिवेश अव्यक्त रूप से बालक के मानसिक विकास सें सहायक होता है । उसमें अच्छी रुचियों और आदतों की नींव पड़ जाती है परिवेश के प्रतिकूल होने पर बालक का मन कुण्ठित हो जाने की सम्भावना रहती है। परिवेश की अनुकूलता या प्रतिकूलता की जाँच व्यक्ति तसी कर सकता है जब वह सनोविज्ञान से सलीभीाति परिचित हो । इसलिए माता-पिता तथा झध्यापक के लिए मनोविज्ञान का अध्ययन उत्तम ही नहीं अत्यन्त झावइयक सी है । प्रत्येक शिक्षाप्रयाली का मुख्य उद्देयेय बच्चे के सहज गुणों को विकसित करना तथा उन्हें समाज के लिए उपयोगी बनाना है । प्रत्येक बालक में कुछ शुण या रुचियाँ स्वासा- विक रूप से पाई जाती हैं । अध्यापक का यह कर्तव्य है कि वह अपनी योग्यता तथा सहानुभूति से बच्चे के सहज गुणों के विकास में उसे सहयोग दे । अध्यापक इस कठिन काम को सफलताएवेक तभी कर
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