केवल भोजन द्वारा स्वास्थ्य | Keval Bhojan Dwara Swasthya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Keval Bhojan Dwara Swasthya by कविराज हरनामदास - Kaviraj Harnamadas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कविराज हरनामदास - Kaviraj Harnamadas

Add Infomation AboutKaviraj Harnamadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १४ ) मिलावटी घी; मिलावटी दूध भर मिलावटी आटा इत्यादि के रूप में जो सेहत का नाश करते हैं; उसकी वात अलग रही। अब ौपधियों का सेवन थ्ारस्भ होता है । कठिन परिश्रम से कमाया हुआ पैसा डाक्टरों की मेंट होने लगता है । फलतः हम देख रहे हू कि कितने ही प्राणियों के अमूल्य जीवन उपर्युक्त किसी न किसी भूल से रोग; निर्बलता और नि्धेनता में फंस कर नष्ट हो रहे हैं । मनुष्य-योनि सर्वेश्रेष्ठ कहलाती है । इसके शरीर; आत्मा; डृदप और मस्तिप्क परमात्मा की अनोखी देन हैं । इनके संयोग का नाम जीवन है. । स्वास्थ्य पर हो हमारा जोवन निर्भर है; 'ोर स्वास्थ्य अधिकतर उस भोजन पर निर्भर है; जो हम नित्य श्रपने पेट में डालते हैं । अतः सोजन की ओर विशेष ध्यान देने की 'वड़ी झावदयर्कता है । रोहूँ का शरीरवर्धक भाग उसके ऊपर का गेहँँए रंग का स्तर है. | वीच का सफेद साग चहुत कम मुल्य रखता है । परन्तु हम हैं कि सफेद आटा; सफेद आटा” की रट लगाये जाते हैं । इसका परिणाम यद्द निकला है कि कारखाने चालों ने अब ऐसी मशीनें लगा ली हैं; जिनसे ऊपर का गेहुँए रंग का साग छील लिया जाता है, जो चोकर के रूप में सौसाग्यशाली पशुओं के खाने के काम आता है; ओर बीच का सफेद भाग आटे के रूप में हम भाग्य- दीन मनुष्यों के लिए तैयार कर दिया जाता है; कितनी नासममी की वात है । यहीं पर बसं नहीं; 'वहुत वारीक आटा, बहुत वारीक आटा” इस मांग के कारण मेरा के समान बारीक पिसाई होने सगी है. । चारीक आटे की रोटी अंत्ड़ियों में जाकर ऐसा लेप कर देती है कि अंतड़ियों का पाचन-रस उस पलस्तर में से भली अकार-नहीं शुजर सकता और खाने में मिल कर उसे सलीमांति




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now