केवल भोजन द्वारा स्वास्थ्य | Keval Bhojan Dwara Swasthya
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.82 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
मिलावटी घी; मिलावटी दूध भर मिलावटी आटा इत्यादि के
रूप में जो सेहत का नाश करते हैं; उसकी वात अलग रही। अब
ौपधियों का सेवन थ्ारस्भ होता है । कठिन परिश्रम से कमाया
हुआ पैसा डाक्टरों की मेंट होने लगता है । फलतः हम देख रहे
हू कि कितने ही प्राणियों के अमूल्य जीवन उपर्युक्त किसी न
किसी भूल से रोग; निर्बलता और नि्धेनता में फंस कर नष्ट हो
रहे हैं ।
मनुष्य-योनि सर्वेश्रेष्ठ कहलाती है । इसके शरीर; आत्मा;
डृदप और मस्तिप्क परमात्मा की अनोखी देन हैं । इनके संयोग
का नाम जीवन है. । स्वास्थ्य पर हो हमारा जोवन निर्भर है; 'ोर
स्वास्थ्य अधिकतर उस भोजन पर निर्भर है; जो हम नित्य श्रपने
पेट में डालते हैं । अतः सोजन की ओर विशेष ध्यान देने की
'वड़ी झावदयर्कता है ।
रोहूँ का शरीरवर्धक भाग उसके ऊपर का गेहँँए रंग का स्तर
है. | वीच का सफेद साग चहुत कम मुल्य रखता है । परन्तु हम हैं
कि सफेद आटा; सफेद आटा” की रट लगाये जाते हैं । इसका
परिणाम यद्द निकला है कि कारखाने चालों ने अब ऐसी मशीनें
लगा ली हैं; जिनसे ऊपर का गेहुँए रंग का साग छील लिया जाता
है, जो चोकर के रूप में सौसाग्यशाली पशुओं के खाने के काम
आता है; ओर बीच का सफेद भाग आटे के रूप में हम भाग्य-
दीन मनुष्यों के लिए तैयार कर दिया जाता है; कितनी नासममी
की वात है । यहीं पर बसं नहीं; 'वहुत वारीक आटा, बहुत वारीक
आटा” इस मांग के कारण मेरा के समान बारीक पिसाई होने
सगी है. । चारीक आटे की रोटी अंत्ड़ियों में जाकर ऐसा लेप कर
देती है कि अंतड़ियों का पाचन-रस उस पलस्तर में से भली
अकार-नहीं शुजर सकता और खाने में मिल कर उसे सलीमांति
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