हिंदी शब्दसागर भाग - 6 | Hindi Shabdasagar Bhag-6

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी शब्द्सागर प--हिंदी वर्यमाला में स्पर्श व्यजनों के श्रतिम वर्ग का पहला वर्ण । इसका उच्चारण श्रोठ से होता हैं इसलिये शिक्षा में इसे प्रोष्ट्य चणें कहा गया है । इसके उच्चारण मे ' दोनो ' श्रोठ मिलते हैं इसलिये यह स्पर्श वर्ण है । इसके उच्चारण में शिक्षा के भ्रनुसार विवार, सास, घोष श्रौर झ्रल्पप्राण नामक प्रयत्न लगते हैं । पंक--सच्चा पु० [ स० पट्ने ] १. कोचड । कोच । थौ०--पंकज । पंकरुदद । २ पानी के साथ मिला हुश्ना पोतने योग्य पदार्थ । लेप । उ०-- श्याम श्रग चदन को श्राभा नागरि केसरि श्रग । मलयज पक कुमकुम मिलिक जल जमुना इक रग ।--सूर (शब्द०) ३, पाप (को०) । ४ बडा परिमाण । घनी राशि (को०) । पककचंट--सच्चा पु० [ पट्टकर्चट ] जलयुक्त कीचड [फो८' । पंककीर--सचा पु [ स० पकवकीर ] टिटिहरी नाम की चिडिया । पंकक्रीड़--पि [ सं० पकवक्कीड ] कीचड में खेलनेवाला । पंकक्कीढ़ी- सशा पुं० सुभ्रर । पंकक्ीडनक--सच्चा पुं० [ स० पकुक्रीडनक 1] दे 'पंकफ्रीड' । पंकगड़क--+सच्चा पु [ पकुगढक ] एक प्रकार की छोटी मछली । पंकग्राहइ--सभा पुं० [ म० पकपाह ] मगर । पंकचर--सदा पुं० [ भ्र० पंक्‍्चर ] छेद 1 छिद्र । पंचर । उ०--हमें न चहिए डनलप टायर, पकचर ले शैतान सँमाल । --बदन०, पुर रे । पंकच्छिद-सा पुं० [ स० पहनच्छिद ] एक प्रकार का. वृक्ष ! निर्मली [को०] 1 पंकज --वि० [ स० पक्कज ] कीचड़ मे उत्पन्न होनेवाला । पंकज--सचा पुं० १ कमल । यौ०--पकज वन > (१) कमल का वन । उ०--तू भुल न री पकजबन में, जीवन के इस सूनेपन में, श्री प्यार पुलकफ से भरी ढुलक ।--लहर, पृ० २। सारस पक्षी (कोर) । पंकजजन्सा--सक्का पु [ स० पकुजजन्मन, ] ब्रह्मा, जो कमल से उद्ध्त हैं (कोन || पंफजन्म--मद्चा पुं० [ स० पकजन्मन्‌ ] कमल [कोण । पंकफजन्मा--सच्चा पुं० [ स० पजन्मचू ] कमल । पुकजन्मा *-- वि० [स० प:्चजजन्मनू | कीचड़ से पैदा होनेवाला फोर] । प्‌ पंकजनाभन-सद्चा पु [ स० पकजनाभ ] विष्णु [को०] । पंकजराग--सश्चा पु० [ स० पकनजराग ] पद्मराग मणि । उ०-- परिजन सहित राय राचिन कियो. सज्जन प्रेम प्रयाग । तुलसी फल चार को ताके मनि मरकत पकज राग । -छुलसी (शब्द०) । पकजवाटिका--सच्षा सी [ स० पक्चजवाटिका ] तेरह श्रक्षरो का एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक भगण, एक नगसण, दो जगण श्रौर अत मे एक लघु होता है। इसे एकावली श्रौर कजावली भी कहते हैं । जेसे,--श्री रघुवर तुम हो जगनायक । देख दशरथ को सुखदायक । सोदर सहित पित्ता पदपावन । बदन किय तेव ही मनभावन ।--केशव (शब्द०) । पंकजात--सच्चा पु० [ स० पक्लजात ] कमल । पंकजासन--सश्ा पुं० [ स० पछजासन ] ब्रह्मा । पंकजित्‌--सच्चा पु० [ स० पकजित्‌ | गरुढ़ के एक पुत्र का नाम । पकजिती-- सच्चा कली [ सं० पकुजिनी ] १. पदमाकर । कमलाकर । २. कमलिनी । कमलवूक्ष 1 पंकण--सशा पुं० [ स० पकुण ] चाडाल का निवासस्थान [को५ु । पंकत(पुग--सन्ना ली [ स० पढ़िक्त ] दे 'पक्ति' । उ०--(क) बक पकत रद नीर, गरजण गाज पिछाँख ।--वाँकी० ग्र ०, भा० १, पृ० १७ । (ख) 'च डीसुल पार जात मराला पकता चगी ।--रघु०, रू०, पु० रद । पकदिग्थ--रि९ [ सं० पकंदिग्ध ] पंकयुक्त । जिसपर मिट्टी पोती गई हो [फोन । पंकदिग्घशरीर--मसद्चा पु० [स पटदिस्घशरीर ] एव दानव का नाम । पकदिग्धाग --वि० [ उ० पकृदिस्थाज् ] वह जिसके श्रगो पर कीचड का लेप किया गया हो [कोने | पंकद्ग्घांग--सशा पुं० [स० पड्ुदिग्धाज्ञ] कातिकेय के एक श्रनुचर का नाम । पंकघूम--सशा पुं० [ स० पक़ुघूम ] जैनियो के एक नरक का नाम । पंकपपंटी--सच्चा ख्री० [स० पकृपर्पटी ] सौराष्ट्रमुत्तिका । गोपीचंदन । 'पकप्रभा--संज्ञा पुं० [ स० पकप्रमा ] कीचड से भरे हुए एक नरक का नाम 1 पकसाक--वि० [सं० पछभाजू ] कोष में डूबा हुआ । पवित्न [कोन । एकभारक--पि. | स पकुभारक ] वीचवाला । पक्लि । जिसमे कीचड भरा हो [को०] |




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