कांटे | Kaante

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Kaante by कृष्णचंद्र - Krishnachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाना धान कला गौर साहित्य की शाधार-शिल्षा ् लि अल यान ऑन पल उम्दा अनमनव्थरणर जब जीवन और कला तथा साहित्य का सम्बंध इतना गहरा बोर अट्ूट है तो इस सम्बंध को तोड़ने का अयत्न केबल मात्र मुखता होगी ऐसा प्रयत्न कमी सफल नहीं हो सकता अधिक से झधिक यह होता है कि कलाकार पनी भूला-भुलेतों में स्वयं फँँस जाता है श्र कला का सत्यानाश कर देता है। इस तरह कला श्र साहित्य में समालोचना का प्रारम्भ होता है जिससे छाच्छाई और बुराई के भेद का पता लगता है । जो शच्छे कलाकार और साहित्यकार हैं जो जीवन की खुनियादी श्ाव- श्यकताओं को समभते हैं. और समाज की सामूहिक शावश्यक- ताों को छापने ध्यान में रखते हैं वे उन शहयों और छान्दोलनों का साथ देते हैं जो जीवन को एक उँखे स्तर पर हो जाने बाले होते हैं। जो कलाकार श्ौर साहित्यकार ऐसा नहीं करते ने था तो पहले स्तर पर रह जाते हैं ौर या अपनी कला और ब्पने साहित्य को समाप्त कर डालते हैं। जीवन तो एक सीढ़ी है जिसपर कसा और साहित्य को एक-एक पग उपर चढ़सा है शौर इस सीढ़ी का ध्तिभ्र छोर काल सके किसी ने नहीं देखा । पापा नि पा नाली पथ




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