ब्रज भाषा | Braj Bhasha

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Braj Bhasha by धीरेन्द्र वर्मा - Deerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सध्यदेश तया ब्रज प्रदेश डे वास्तव में गार्यावतं की दक्षिणी सीमा जो पहले विध्य तक थी अब इस विस्तार के कारण चदल गई हैं। हिंदी वोलने वालों ने विध्य के उस पार न केवल नर्मदा की घाटी में ही अपना अधिकार स्थापित कर लिया है, बल्कि भौर भी दक्षिण में फल गए हैं। उदाहरणार्थ महानदी के उत्तरी मैदान में छत्तीसगढ़ प्रदेश में इन्होंने उपनिवेश सा वना लिया है। राजस्थान में अरावली के उस पार दक्षिण-पदिचम में मारवाड़ के रेगिस्तान में तथा कुछ अंगों में गुजरात तक गंगा की घाटी की संस्कृति के प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रवेश दिखलाई पड़ता हैं। यहाँ यह स्मरण दिलाना अनुचित न होगा कि भौगोलिक दृष्टि से विंध्य के पार पहुँचने के लिए गुजरात का प्रदेश सब से अधिक सुगम है इसीलिए बहुत प्राचीन काल से यह मध्यदेश का उपनिवेश सा रहा हूँ। ५. परिचमी सीमा की कोई स्पष्ट विभाजक रेखा न होने पर भी सीमा है । यह सिंघु तथा गंगा के मेदानों के वीच में प्राचीन काल की सरस्वती नदी के किनारे किनारे मानी जा सकती है। सरस्वती के पदिचेम में पंजाबी तथा पूर्व में हिन्दीभाषी प्रदेश है । सरस्वती और यमुना के बीच का भाग सरहिंद कहलाता हैं। मध्यदेश का यह पश्चिमोत्तरी सीमांत प्रदेश हैं इसीलिए विशेष महत्वपूर्ण रणक्षेत्र, जैसे कुरुक्षेन और पानीपत, यहीं स्थित हैं। मध्यदेश तथा शेष भारत पर एकाधिपत्य पाने के लिए इन्हीं स्थानों पर अनेक वार घोर युद्ध हुए हूं। प्राचीन संस्कृत साहित्य में, उदाहरण के लिए महाभारत में, इस प्रदेश में घने जंगलों का जिंक मिलता है तथा यह भी उल्लेख है कि इन जंगलों: को काट कर इस भूमि भाग को आवादी के योग्य बनाया गया था।' सरहिद तथा उससे मिला हुआ गंगा यमुना के दोआाव का उत्तरी भाग वह हिस्सा है जो पंजाब के कुछ कम कट्टर भूभाग के सर्वाधिक निकट है। यह भाग अपनी स्थित्ति के कारण ग्यारहवीं शाती के वाद लगभग ६०० वर्षों तक विदेशी आाक्रमणों का अड्डा बना रहा। इसी भाग में विदेशी मुस्लिम शासकों ने दिल्‍ली को अपनी राजधानी वना कर सताव्दियों तक मध्यदेश तथा झेष भारत पर राज्य किया। फिर मध्यदेश के अन्य अधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केन्द्रों जैसे मथुरा, अयोध्या, प्रयाग, काशी आदि से यह सब से अधिक दूर पड़ता है। यद्दी कारण हैं कि हिंदी भाषी होने पर भी इस प्रदेश की भाषा, रीति-रिवाज तथा लोगों के रहन सहन में हम पंजावीपन तथा इस्लामी प्रभाव अधिक पाते हैं। ६. सध्यदेदा के पूर्वे में कोई प्राकृतिक रुकावट नहीं है। विहार में वर्तमान भागलपुर के बाद, जहाँ विंघ्यमाला के प्रसार से मैदान के अत्यन्त संँकरीले मार्ग वन जानें के कारण गंगा कुछ उत्तर की ओर मुड़ती है, गंगा के मैदान की पहली पूर्वी सीमा कहीं जा सकती हें। इस स्थान के पु में हम गंगा के मुहाने का प्रारंभ पाते हैं, जो दक्षिणी बंगाल का दलदली भाग वन जाता है। सरहिंद में स्थित अम्बाला से लेकर बिहार में भागलपुर तक की दूरी लगभग ७५० मील है। एक भोर इस दूरी के कारण इस चिस्तुत क्षेत्र में हमें विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयाँ मिलती हें, किन्तु साथ ही इस क्षेत्र की विदिष्ट प्राकृतिक रचना के कारण यातायात में सुविघा होने के फलस्वरूप ये इका-' ' महाभारत, भादिपयें, अध्याय १८,, खाण्डवदाह।




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