बिना पैसा दुनिया का पैदल सफ़र | Bina Paisa Dunia Ka Paidal Safar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.76 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ भारत से प्रस्थान
शिषु--साधना, जिसका वाद मे सैंने बात” नाम रखा, को गोद से
लेकर चह चेंगलोर स्टेशन पर आयी और गले से माला पहनाकर मुझे
बिदा किया । पूरे ढाई वरस तक मेरे आने का वह इन्तजार करती रही ।
१० मई १९६२ को विछुडे हुए हम दो प्राणी १६ अक्तूबर १९६४ को
फिर से मिले । यात्रा वेटी भी अब तक काफी बड़ी हो गयी है ! प्रारम्भ
में तो बह सुझसे शिझकती रही 1 पहले-पहल जब दम मिले, तो उसने लता
से पूछा : “ये कौन है ?” “पवाबूजी है” ऐसा बताने पर भी वह मेरे
पास आने से डरती रही । पर अब तो वह मुझे छोड़ती ही नहीं ।
इस विश्व-यात्रा का श्रेय लता के आशीर्वाद और साहस को ही है,
जिसने मेरा जाना सम्भव और सुगम बनाया ।
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विनोबा से सेट
से
विनोबा से मिलने के लिए, हम १० मई को बेंगलोर से रवाना हुए
और मद्रास तथा कलकत्ता रुकते हुए १६ मई को गौंहाटी से २७ मील
दूर गोरेश्वर ग्राम मे उनसे मिले । विनोवा टीन के छप्पर के नीचे बैठे
हुए 'मैन्नी आश्रम की बहनों से बाते कर रहे थे। मुक्त हृदय से ये
आश्रम-जीवन की कत्पना प्रस्तुत कर रहे थे कि बीच मे ही हमने जाकर
प्रणाम किया । ““आ गये ?” कहकर जब विनोबा सुस्कराये, तो ऐसा
लगा, मानो यात्रा की थकान पलभर में ही विछीन हो गयी |
विनोबा ने पूछा कि “किस रास्ते से मास्को पहुंचोगे ?” हमने
बताया । “दिल्ली से पंजाब होकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान; ईरान
होते हुए रूस जायेगे और मास्को के वाद यूरोप की तरफ आगे वढ़ेगे।”
विनोबा ने “वर्ड एटलस' खोली और हमारे रास्ते के यारे से
गहरी दिख्चस्पी से देखने लगे । बोडे : “इतना लम्बा रास्ता क्यो ले रहे
हो ? क्यो नहीं अफगानिस्तान से सीधे तादयकंद होकर मास्को की तरफ
आगे बढ़ते ?” हमने उत्तर में ठो कारण बताये : “एक तो दम अधिक-
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