अर्थहीन | Arthheen

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Arthheen by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिन्दगी या मौत ११ यह सब घटना का रूप भर था पर आ्राज वह समभने का प्रयास कर रहा है । जसे दोनो मे भेद है । लगता है जसे इस मुस्कान पर किसी आ्राकषंगा का प्रतिबिम्ब पड गया हो । फिर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा । एकाएक किसी श्रस्थिरता के लक्षण व्यक्त होने लगते है। मामाजी की विनोदी प्रवृत्ति को कोई चिन्ता श्रा घेरती है । इसका प्रभाव भ्रज्ञात रूप से सारे घर के वाता- वरण पर पडता है । इस चिन्ता की छाया मे पड़ी सकुचित श्रौर भय- भीत हो उठती है । श्रब जब वह दूध या पानी झ्रादि लेकर युवक के कमरे मे आती तो उसकी सघन बरौनियों की श्रोट मे झाँखो मे छाई करुणा नोलाकाश मे बादलों की छाया जैसी भ्ॉक जाती । झाज युवक को लगता है जेसे इस घेरा-घारी के बीच उसके मन पर भी कुछ बोभा है। पर उस दिन वह उसका कौतूहल भर था । धीरे-धीरे मामीजी के मन का सन्देह कुछ व्यक्त हुभ्ना । उस सन्देह के सहारे युवक ने जसे सब-कुछ देख लिया । अरब उसे सब कुछ स्पष्ट साफ लगने लगता हे । पर श्राज उसे झ्रपने उसी विश्वास पर सदेह हो रहा है। उस दिन जो उसे नीलाकाश जैसा खुलापन लगता था वह जसे उसके अ्रपने अरहकार का जादू हो । लेकिन तब वही सत्य था । उसके मन मे युवती के प्रति भयानक उपेक्षा श्र भर्त्सना थी । फिर धीरे-धीरे बात कुछ भ्रौर ऊपर श्राई वातावरण मे फंलती जाती है उसके मन में उभरती शभ्राती हैं । उन दिनो दयामा उसके कमरे मे बहुत कम श्राती थी । मामाजी श्रौर मामीजी में किसी बात को लेकर गहरा मत-भेद चल रहा है । एक दुसरे से स्पष्ट कोई कुछ नहीं कहता पर मन का श्राक्रोश निकालने का शभ्रवसर निकाल लिया जाता है। ऐसे ही वातावरण मे उमसन चल रही है । वेसे युवक ऐसी बातो को महत्व देकर नहीं चलता । वह श्रपनी पढाई-लिखाई मित्र-मडली को लेकर श्रपने-भ्राप मे अधिक लीन रह लेता है । पर उस उमसन का




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