सेतुबन्ध | Saitubandh

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Saitubandh by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ७ सस्कृत के महाकाव्यों के प्र्व हुई होगी | प्रकृति चित्रण की शैली से भी यही सिद्ध होता है। इसमे प्रकृति का जो रूप उपस्थित किया गया है, उससे स्पष्ठतः यह जान पड़ता है कि इसका रचयिता दक्षिण का है, उत्तर का नहीं | इस प्रकार वाकाटक वश के प्रवरसेन द्वितीय को सितुबन्ध' का वास्तविक रचयिता मानने की ओर ही तक हमको ले जाते हैं ।* प्रथम आश्वास . 'सेतुबन्ध' में मगलाचरणु के रूप सेतुबन्ध की विष्णु तथा शिव की स्वति की गई दै ( १-८)। कथा का विस्तार इसके बाद कथा-निर्वाह की कठिनाई का उल्लेख (€), काव्य का माहात्म्य (१०), काव्य-निर्वाह की दुष्करता (११), कथा का संकेत (१२) है | मुख्य कथा का प्रारम्भ इस सूचना से होता है कि राम ने बालि का वध करके सुग्रीव को राजा बना दिया है और वर्षा-काल बीत चुका है। राम ने वर्षा-ऋतु को निष्क्रियता की स्थिति में क्लेशपूवक बिताया है ( १३-१५ ) | शरद ऋतु का आरम्म नवीन प्रेरणा के रूप में होता है, शरद का चित्रमय वन ( १७-३४ ) है । हनूमान को गये धिक दिन हो जाने के कारण राम सीता-वियोग में दु.खी है (३५), हनूमान वापस श्राते हैँ (३६), वे समाचार तथा मसि प्रदान करते हैँ (३७-३६) । राम सीता कौ स्मृति से रोमाचित होते हैं, पर क्रुद्ध भी (रावण के प्रति) होते है (४०-४५), और अपने धनुष पर दृष्टि- पात करते हैं, इससे सुग्रीव को सतोष होता है (४६-४७) । लकामियान की भावना से राम की दृष्टि लक्ष्मण, सुग्रीव तथा हनूमान पर पड़ी (४८) । तद्‌ न्तर राम सेना सहित लकामियान के लिए यात्रा करते हैं और विन्ध्य, सह्य पबतों को पार करते हुए दक्षिण सागर-तट पर पहुँच जाते हैं (४६-६५) । द्वितीय आश्वास : राम अपने सामने फैले हुए विराट सागर के अद्भुत सौन्दर्य को देखते हैं (१) और इसी रूप मे सागर का वर्शान किया जाता है | सभी सागर को देख रहे हैं ( २-३६ ) | सागर-दशन १ इन समस्त तकों की स्थिति आगे के विवेचन से स्पष्ट हो जायगी |




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