भगवान् बुद्ध | Bhagwan Budh

Bhagwan Budh by धर्मानन्द कोसम्वी - Dharmanand Kosmviश्रीपाद जोशी - Shripad Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पालि-वाइसय में तिपिटक (त्रिपिटक) तास का जो ग्रस्थ-समुदाय प्रमुख है उसके तीन भेद हू--सुत्तपिटक विनयपिटक आर सि- घम्सपिटक । श्सु्तपिटक में प्रधानतया बुद्ध और उनके अ्रग्रदिष्यों के उपदेश्यों का संग्रह है । विनयपिटक सें भिक्षुप्नों के प्राचररण के सम्बन्ध में बद्ध द्वारा बनाये गए नियमों उनके बनाने के कारणों समय-समय पर उनमें किये गए परिवर्ततों श्रौर उनकी टीकाझओं का संग्रह है । प्रशिधस्म- पिटक सें सात श्रध्याय हैं । उनमें बुद्ध के उपदेदा में श्राई हुई श्रनेक बातों का सम्यक्‌ विवेचन किया गया है । युत्तपिंटक के दीघनिकाय सज्जिमिनिकाय संयुत्ततिकाय अंगुत्तर- निकाय श्ौर खुदकतिकाय नासक पाँच बड़े विभाग हैं । दीघनिकाय में चौंतीस बृहतु सुत्तों का संग्रह किया गया है। दीरघे का अर्थ है. बहुत (सुत्त) । उनका संग्रह इसमें होने के कारण इसे दीघनिकाय कहते हैं । सज्किसनिकाय सें मध्यम झ्राकार के युत्त संग्रहीत किये गए हैं श्रतः उसे मज्किम-( सध्यम )-निकाय नाम दिया गया । संयत्तनिकाय के पहुले विभाग में गाथा-मिश्चित सुत्त आए हैं और पीछे के भागों सें श्रलग- अलग विषयों से सस्बन्ध रखने वाले सुत्त संग्रहीत हैं । इसीलिए इसे संयुत्तनिकाय अर्थात्‌ मिश्रनिकाय कहा गया है । झंगुत्तर का अयथे है वह विभाग जिसमें एक-एक झंग का विकास होता गया है उसमें एकक निपात से लेकर एकादसक निपात तक ग्यारह निपातों का संग्रह है । एकक निपात वह भाग है जिसमें एक ही वस्तु के सम्बन्ध में बुद्ध हारा कहे गए सुत्त संग्रहोत हूं । इसी प्रकार दुक-तिक-निपात श्रादि समभनें




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