वायु पुराण भाग 1 | Vayu Puran Part- I

Vayu Puran Part- I by वेदमूर्ति तपोनिष्ठ - Vedmurti Taponishthश्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

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श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ अर्थात्‌ दे इन्द तुम कभी किसी से भी नही लंडे तुम्द्दारा कोई शत्रु नही है । तुम्दारे युद्धो का जो वर्णन किया जाता है । बहू सब माया बनावटी या बाल्पनिक है । न आज कोई तुम्हारा शत्रु है और न पहले कोई दुम से लड़ा था । पर पराणवारो ने तो उसका वणन दो राजाओं के सागोपाग युद्ध की तरह इतना वडा-चढाकर निया कि मे सब वास्तविक ध्यवित दी जात पड़ने लगे । यही बात महिपासुर और दुर्गा के सप्राम की है जिसका वर्णन सप्तशती मे बड़ों मनोमोहश लख्छूगर मापा में क्या गया है । उसमें कहा ण्या है कि महिषासुर ने भत्य त प्रबल होकर देवों को भगाकर इ प्रासन पर अधिकार कर लिया । फ़िर समस्त देवतालों की शक्ति को देवी के कप में प्रकट करवे उसके द्वारा महिप बघ कराया गया । पर वदिक सुक्‍तों में मद्धिप को एक तम हामरण माना गया है जी आरम्मिक यवस्पा मे सूर्य के तेज को रोके रहता है और जय के दर में सीर शवित पूण रूपेण एकनित होकर परिधि की आर बढती है तो बहू तम-आवश्य या. मद श्यय हो नष्ट हो जाता है। ऋ जेद में फहु है-- अन्तदंचरति रोचनारस्य अाभदवानती ये व्याव्याम भाहिदों दिगसु ॥ [१ ।१८६।२] भर्यात्‌ सूय के भीतर से जोज्यति या प्रकाश निकलता है बह प्रपाश इनके प्राण-अपान से प्रकट हुआ है। उसके निकलने से सहिप [ अन्घकार || नष्ट दो जाता है जौर सूय॑ भगवान समस्त लोक को व्याप्त कर लेते हूँ । इसी प्रकार पराणों में पुरुरवा उबशी नद्प ययाति तुरबेश सादि राजाओ को बडी बडी विचित्र नथायें दी गई हैं सर उन्हीं को बाद के समस्त प्रमुख भारतीय राजवशो का स्रोत बतलामा गया है । पर बेदो के अध्ययन से पता चलता हैं कि ये सब दाकशोय पदाय हैं। अऋग्देद के पन्नों थे बार-बार इन सब के नाम लगे हैं। पुराणों के लेशानुसार ययाति के पाँच पूष्र थे जिनके नाम थद्द दुवस दपद दुझ्य थौर बनु थे। इड्डी से भारत के धरदबश यादव कौरव लोदि चते हैं । इन सब नामों को ऋग्वेद के एफ मज से आकादीय नक्षव बतलाया गया हैन-




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