गद्य रत्नावली | Gadaya Ratnaavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पं योगवाशिष्ठ को भाषा में लिखा । इस ग्रन्थ की भाषा काफ़ी प्रौढ़ जान पड़ती है । उसका उदाहरण यहाँ दिया जाता है-- मलीन वासना जन्मों का कारण है। ऐसी वासना को छोड़कर जब तुम स्थित होगे तब तुम कर्ता हुए भी निलेंप रहोगे और हुष शोक आदि विकारों से जब तुम अलग रहोगे तब वीतराग भय क्रोध से रहित रहोगे इसी प्रकार सन्‌ 1761 ई० में 760 पृष्ठों में दौलतराय के द्वारा किया गया पदमपुराण का खड़ी- बोली में अनुवाद भी यह सिद्ध करता है कि व्रजभाषा- गद्य के समान खड़ीबोली गद्य की भी परम्परा थी उसे ढूंढ़ निकालने की बात है। इस पदुमपुराण के लेखक हैं दौलतराय । उनके गदुय का नमूना यह है-- जंबू द्वीप के भारत क्षेत्र विष मगधनामा देश जित सुन्दर है जहाँ पुण्याधिकारी बसे हैं इन्द्र के लोक के समान सदा भोगोपभोग करे हैं और भूमी विष॑ साँटेन के बाड़े शोभायमान है जहाँ नाना प्रकार कें अन्नों के समूह पव॑त समान ढेर हो रहे हैं यह है उन्नीसवीं शताब्दी के पु्वें का हिन्दी गद्य का स्वरूप । इसे देखकर यह प्रमाणित॑ हो जाता है कि खड़ीबोली गद्य की भी परम्परा थी ओर यह समझना भ्रम है किं फोटें विलियम कालेज




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