स्वातन्त्र्योत्तर हिंदी कहोनियों में आर्थिक संघर्ष की अभिव्यक्ति | Swatantrayotter Hindi Kahaniyon Me Arthik Sangharsh ki abhivyakti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आवश्यक है कि इन तीनों ने विश्व के सारे कृहानीकारो को अपने-अपने ढंग से प्रभावित किया है और आज भी ये बहुतों के आदशे हैं। के स्वतन्त्रता के बाद की हिन्दी कहानी इसी बिन्दु पर उसकी ऋणी है। लेकिन इस कहानी की निव्याज सहजता की भगिमा के पीछे कितना कठोर अनुशासन, ७, पो”' और ''ओ हैनरी'' के सस्कार वाला पाठक ल्प चेतना तथा अनुपात सन्तुलन है उसे ' नहीं समझ सकता। कहीं भी वह सतह पर नहीं हे। वह कहानी सुनाता नहीं. स्वय उसमे जीता है। स्थिति या अनुभूति से तुम्हारा परिचय नहीं है। उस पर कभी मत लिखो .......उसने अपने छोटे भाई को लिखा था ....कहानी मे घिसे, पिटे, बेकार और अर्थहीन वर्णन मत दो। केवल अपने निरीक्षण से कुछ बिम्ब चुन लो उन्हें सम्पादित करके इस तरह रख दो कि चित्र खुद बोल उठे .....चॉदनी रात में कुए पर लेटी रहट की परछांइ और टूटी बोतल के कॉँच पर झिलमिलाती फकिरणें रात का जैसा सजीव भव्य वातावरण उपस्थित कर सकती है। वह लम्बे-लम्बे वर्णन नहीं कर पायेंगे . . . . . .चैखव की कहानियों का वातावरण उसे पात्रो के मूड का ही एक अविभाज्य अग बन जाता है [जैसा कि कहीं-कहीं प्रसाद जी की कहानियों में है| और उसकी कहानियाँ सामने से नहीं मन के भीतर ही निर्मित होती है। बिना झटके या विस्मय के साथ जब वे समाप्त होती है। तब पाठक की चेतना में रह जाते हैं कुछ चित्र, कुछ दृश्य, कुछ प्रभाव, कुछ कुहेलिकाये पेत्र के साथ बिताये कुछ स्मरणीय क्षण, जहाँ न वारतालाप याद आते हैं न मुद्रायें .........घयाद आती है तो मधुर संगीत की झंकृतियो जैसी गुँज | आधुनिक हिन्दी कहानी का स्थान और उसका मूल्यांकन उसके इतिहास के अभ्यन्तर में जितनी शक्तियाँ कार्यरत रहीं है, उनका सबका लेखा -जोखा तथा विवेचन




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