कथा सरितसागर का भाषानुवाद | Katha Saritsagar Ka Bhashanuvad

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Book Image : कथा सरितसागर का भाषानुवाद  - Katha Saritsagar Ka Bhashanuvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्न्न्ट सर्त्सागर भाषा । ३. पति के;तुम भर तुम्हारे सिवाय, श्रनेक ' कन्याधीं दक्षमज़ापति ने तुम्हारा विवाह ' मेरेसाथ किया: श्और- इ्न्य कन्याओं का घमादिक देवताओं के साथ करदिया एकसमय द्रश्त ने-यन्न में सब जामाताओं को बुलाया .परन्ठु केवल मुमे नहीं बुलाया, तत्र तुमने दक्षसे पूछा कि मेरे पतिकों क्यों नहीं बुलाया दक्षने यह उत्तर दिया, कि हुंग्हारा पति मनुष्यों के कपाल भादिकं श्रशुभ वेपको घारण क़रता है उसको मैं यन्न में फ्रैसे बुलाऊं'उसके ऐसे कठोर वचनोंको सुनकर हे पाव॑तीजी:तुमने यह शोचा कि यह वड़ापापी हे. भर मेरा शरीर भी इसी से उत्पन्न हुभ्नाहै इसलिये तुमने उस :अपने शरीर को योगसे त्याग दिया शोर मेने कोषसे दक्षके, यज्नका नाश करदिया इसके उपरान्त जैसे समुद्रसे चन्द्रमाक़ी कला उत्पन्न हुई है उसी प्रकार हिमालय के घरमें ठम्हारा जन्महुआआ ३९ इसके उपरान्त तुम्हें ते याददी होगा कि जव मैं तप क़रने के लिये. हिमालयपर,गया तव तुम्हारे पिताते-मेरी सेवाके लिये हमको दआज्ञादी इसी बीचमें तारकासुरके मांरने' के निमित्त मेरेपुत्रहोने के लिये. देवतालोगो ,के भेजेहुए कामदेव ने अवसर पाकर गेरेडपर अपने वाण लाये और मैंने, उसे भस्म करदिया फिर बड़ा कठोर तपकरके तुमने से प्रसन्न किया और मैंने भी वुम्हारे तपके वढाने के लिये बहुत देरलगाई इसप्रकारसे तुम येरे पूव्वजन्मकी खरी हो व्रताओ अव मैं और क्याकहूं ऐसा कहकर महादेवजी के चुपहोजाने पर पार्वतीजी क्रोघषकरके बोली कि तम.वढ़े। शतेहो: भरे प्राथना करनेपर भी कोई उत्तमकथा नहीं कहते गज्नाको शिरपर धारण करतेहो सम॑याकी बन्दना करतेहो क्या मैं तुम्हें नहीं जानती यह वचन सुनकर जन्न शिवजी ने झपूर्ष मनोहर कथा कहने की प्रतिज्ञाकी तव प्रार्वतीजी का क्रोध शान्तहुझ्ना ४१. पार्वतीजी ने यहां कोई न.्याने पावे यहें कहकर नन्दी क़ो द्वारपर खड़ाकरदिया घोर शिवजी, कथा प्रारम्मकरके कहनेलगे कि देवता लोग:अत्यन्त सुखी होते है भर मजुष्य अत्यन्त इलीहोते हैं इसलिये. देवता और मतुप्यों की कथा 'गत्यन्त मनोहर नहीं. है इसहेतु से में विद्या की कथा मारम्भ करताईूं इसप्रकार जव शिवजी, कहने . लगे? तो,उसीसमय शिवज़ी का अत्यन्त, प्यारा पुष्पदन्तनाम गण 'ाया और दारपर खड़े हुए नन्दी ने उसे शेकदिया परन्तु मुझे निष्कारण रोकादे ऐसा समककर योगके बलसे अलक्षित होकर भीतर चलागया और जाकर महदेवजी कीं कहीहुई सात विद्याध्ररों की श्रपूव्वे कथासनी और वही सवकथा उसने अपने घर जाकर ,जयानाम अपंनी,ख्री सें कही,क्योंकि कोई भी खियों से धन और गुप्त वात्त को नहीं छुपासक्ला १२ उसकथा के आश्चर्य से भरीहुई जयाने थी सम्पूर्ण कथा प्रारवतीजी के सन्मुख - कहीं क्योंकि (खियां किसी वातकों छुपा नहीं .सक्की > जयासे इस कथाको सुनकर वहुत क्रोधयुक्क हो पार्वतीजी ने शिवजी से कहा कि तुमने यह अपूव्व कथा नहीं कंही इसे तो जयासी जानती है तब महा- देवजी ने, 'यान॑ंकर देंखा “और कहा, कि ,पुष्पद॑न्त ने योगवल से यहां झाकर सर्वकथा,सुर्न। हैं ्यौर जयासे ब्रणेन,की हैं नहीं -तों इसको कौन जानसक्लाहे यह सुनकर परार्ववीजी ने ब्रड़े कोषसे पुष्पदन्त को बुलाकर हे इु्ट तू महष्यहोजा यह शापदिया घर उसके लिये शिफ़ारस करनेवाले मास्यवाद्‌ को भी यही शाप दिया, ५७ तब 'उनदोनों ने और जयाने पंरापेरें गिरकर बहुत समकीया तब पर्वतीजी




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