हमारी लोक कथाएं | Hamari Lok Kathayen

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Hamari Lok Kathayen by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जल-फन्या बुन्देलखण्डी रे कुछ समय और यहा-वहा की वातो में बीत गया । इतने में पेजनो की झनकार सुनाई दी । जसोदी बोला महाराज होशियार हो जाइए । जलकत्या आ रही है । राजा ध्यानपु्वेक देखने लगा । जलकन्या अपने रूप का प्रकाश फैलाती हुई तालाब के पार पर आ खडी हुई । देखते ही राजा को मूर्च्छा आ गई । कुछ समय मे जब सावधान हुआ तो कहने छगा वस-बस यही है । इसी को मेने.सपने में देखा था । कैसी भली लगती है क्यो जसोदी तुमने उसे नजदीक से तो देखा होगा जसोदी बोला महाराज आतुर मत हुजिए । धीरज रखिए । कल सवेरे आप उसे नजदीक से देख सकेगें । अभी तो चुप बैठिए और तमाणा देखिए । जलूकन्या ने देह पर से चोली उतारी तालाब में घुसी और स्नान करके सूखी धोती पहनी । फिर मदिर में जाकर पूजा की और सात मुट्ठी आटा चढाकर चली गई । जसोदी सपाटे से उतरा और मदिर में जाकर आटा उठा लिया । फिर उसने राजा को बुलाकर कहा आप बैठिए मे रोटी बनाता हू । जब रोटिया बनकर तैयार हो गई तव जसोदी कहने लगा सुनिए राजा साहब कुत्ता जब रोटिया लेकर भागने लगेगा तव से दौडकर उसकी पूछ पकड लूगा । आप भी भागकर मेरा एक हाथ. पकड लें । हाथ मजबूती से पकडे जिससे छूटने न पाय । अब सावधान हो जाइये । इतना कह दोनों तालाब की ओर गए । कुत्ता वैठा हुआ मौका ताक रहा था । ज्योही वे वहा से हटे कि वह रोटिया लेकर भागा । जसोदी तो देख ही रहा था । दौडकर उसने एक हाथ से उसकी पूछ पकड ली और दूसरा हाथ राजा की ओर फैला दिया । राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया । कुत्ता ताकतवर था । दोनो को घसीट कर ले गया। कुत्ता कूदकर मदिर में चला गया और भोहरे के मार्ग से जाकर कुए में कूद पडा । नीचे आये तो बाग में पहुच गए । जसोदी ने पूछ छोड दी । दोनो चाग में घूमने लगे । राजा ने ऐसा विचित्र बाग अपनी जिन्दगी में कभी न देखा था | देखते ही बनता था | जलकन्या जसोदी को पहचानती थी । उसके साथ एक सुन्दर युवक को देखकर प्रसन्न हुई। मन मे विचारने लगी कि भगवान नें आज मेरे लिए




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