बाल स्वास्थ्य और बाल शिक्षा | Bal Swasthya Aur Bal Shiksha

Bal Swasthya Aur Bal Shiksha by सत्यपाल रुहेला - Satyapal Ruhela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंपदिष्वास परम्पराएं भौर बाल स्वास्थ्य श्र नागालैंड में 867 स्त्रियों प्रति हजार पुरुष हैं । ऐसी स्थिति में कन्यावध अथवा पुराने दकियानूसी सामाजिक मूल्यों से प्रभावित होकर कन्याओं को कुपोषण लापरवाही अथवा विद्वेपपूर्ण व्यवहार से मरने देना निसंदेह घोर निन्दनीय व घुणित कृत्य है । सामान्यतः देखने मे आता है अधिकांश भारतीय परिवारों में लड़कों को खूब पोप्टिक ताजा व अधिक भोजन खाने को दिया जाता है भर बीमारी पर उनका इलाज भी तुरन्त व यवाशमित जितना अधिक हो सकता है करवाया जाता है लेकिन लड़कियों की कम पौष्टिक बचा-खुछा गला-सड़ा बासी व कम भोजन दिया जाता है और उनके इलाज की ओर माता-पिता प्राय लापरवाही वरतते हैं। फलस्वरूप बालिकाओं का स्वास्थ्य प्राय खराब रहता हु बालक के जन्म पर कई प्रकार के अंधविश्वास व प्रथाएँ मानी जाती हैं जो न केवल भत्ताकिक अपितु हानिकारक भी है। बच्चें के जरम-नाल को प्राय लोहे के चाकू या हंसिया से काटा जाता है जिससे बच्चे को भतप्रेत न सताए । लेकिन उस चाकू को उवाले हु ए पानी में पूर्ण रूप से संक्रमण विह्दीन नहीं किया जाता । फलस्वरूप चाकू की जंग से टिटेन्त बीमारी के कीटाणु नवजात शिशु को लग जाते हैं और वड़ी संख्या में शिशु मर जाते है नाल को तुरन्त काद कर घर के आंगन में ही गाड दिया जाता है अज्ञानतावश उसे गंदा व अमुपयोगी माना जाता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि जन्म-नाल मे जीवन-पोपक बहुमूल्य पदार्थ हाते है अत नाल काटते समय जच्चा के पलंग से बालक को नीचे करके माल को सूत कर (ताकि नाल के भीतर का अधिक लोहयुक्त रक्त बच्चे के शरीर मे न चला जाये) तब उसे भली भांति उबाले गए चाकू से काटा जाना चाहिए । अछिकोश ग्रामीण परिवारों में जन्म-नाल को काटने के याद बच्चें के दरीर पर जो नाल का थौड़ा-सा अंश लटका रहता है उस पर गोबथ्यथा काली मिट्टी लगाते हैं । इससे टिटेनस के कीटाणु नवजात शिशु के शरीर मे प्रवेश कर जाते हैं । इसीलिए अनेक शिशुओं की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है अधिकांश परिवारों में रिश्तेदार व आस-पड़ोत के लोग प्रथा के अनुसार जन्म लेने वाले बच्चे को देखने व माता-पिता को बधाई देने आते है और




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