भारतीय दर्शन का इतिहास भाग - ४ | Bharatiy Darshan Ka Itihas Bhag 4
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.48 MB
कुल पष्ठ :
494
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुरेन्द्रनाथ दासगुप्त - Surendranath Dasgupta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मागवत्त पुराण 1 [ द मैनिक विनियांग नहीं होता और ऐसा धम केवल श्रुति के विधि निधेघ से ज्ञात क्या जा सकता है उसमे भ्र्हिसा की घारणा का थोडा-सा श्रश सप्निहित है बयाकि दूसरा का क्षति पहुँचाने वाले कम काण्डा के प्रनुप्ठान का उसके मावाथ में समावेश नहीं क्या गया है । घम मे सब प्रकार के सवेगों. रहस्यात्मक मावा तथा विसी मी रूप मे बुद्धि या विचार के पर्याय का वाई स्यान नहीं है श्रपितु उसमें केवल बाह्य श्रुति ादेशा के प्रति यथावत् निप्ठा का पूवग्रहण हाता है उसम किसी आतरिव आराध्यात्मिक नियम या वुद्धिरक सक्ल्प अथवा ईश्वर की इच्छा के प्रति निष्ठा का लेशमात्र मी नही मिलता | परतु श्रुति का श्रादंश कुछ स्थितियां में तो निश्पाधिक श्रादेश होता है श्रौर श्रन्य स्थितियां में सापाधिक झादेश जिसका श्रथ है दि बह प्यक्ति वी वुछ शुम वस्तुग्रा के प्रति वामना से प्रतिबंधित होता है । वुमारिल इस प्रत्यय की व्याप्या करते हुए कहते हैं कि वैदिक श्रादेशा के झ्नुसार किसी द्रव्य क्रिया या गुण वा विहोप प्रकार के परिचालन द्वारा सुख की उत्पत्ति के लिये उपयोग करना ही घम कहलाता है । . यद्यपि यह द्रव्य गुण श्रादि इद्ििया द्वारा प्रत्यक्ष य एव श्रयस्कर स एव धम शतेन उच्यत क्थमवगम्यताम् या हि यागम- नुतिष्ठति त घार्मिक रति समाचक्षते यश्च यस्य क्ता स तेन व्यपदिश्यत यथा पाठक लावक इति । तेन य पुरुष नि श्रेयसेन सयुनक्ति स धघम शब्देन उच्यते काध्य जया नि श्रेयसाय ज्यांतिप्टामादि । काइ्नय ये प्रत्यवायाय । - मीमासा सुन पर शवर भाप्य १ १ २॥ लबिन प्रमाकर इस नियम की मित् व्यात्या दते हैं तथा सुमाव देते हैं कि इसका तात्पय यह है वि वेदा का प्रत्येक आदंश सदा वाध्यकारी हाता है शौर धम कहलाता है भने ही उसके पावन करने से हम ऐस काय बर बैठे जी अय लागा का क्षति पहुँचाय । तत सवस्य बेटायस्य बायत्व अथत्व च विधीयत इति द्यनादिनियागानाम पि अ्रयत्व स्यात् 1 जा हास्त्र दीपिवा प्ृ० है. निणय सामर प्रेस वस्वई १६१५ कुमारित इसकी आग व्यास्या करते हुए कहते हैं कि वह बाय (बैदिन आटा के श्रनुसार संपादित ) जा सुख उत्पन्न करे तथा तत्वाल या सुदूर भविष्य म दुख उत्पन्न न वरे पम कहताता है । फल तावद धर्मों स्य इयनाल सम्प्रधायत यटा येनप्ट सिद्धि स्यादनुप्ठानानुव घिनी नस्य घमत्वमुच्यत तन इयनादि वजनमु या त चालना गर्रा लाए पयेएएए-सलेकशणा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...