यज्ञोंपवित संस्कार | Yagyopavit Sanskar

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Yagyopavit Sanskar by ज्ञानसागर जी महाराज - gyansagar ji maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे .......* यज्ञोपर्बोत-विचार 1 यज्नोपवीत घारण करने को कारण । ं इस जीवने अनादिं काल से वड़ी २ मलिन पर्यायें घारण की डै। जिसके कारण जीव के विशयुद्ध णुर्गोमें भी विशेष मछिनता प्राप्त दो गई है। जैसी २ मलिन पर्याय इस जीव को प्राप्त होती है. बसे २ कर्मी का विशेष आवर्ण-आत्मगु्णों में मठिनता प्राप्त अस्त टै। _.. जब तक सांसारिक पर्यायों का धारण करना दै तब तक जीव को मछिनता नियम से है ही । अशुद्धता आशुद्ध पर्याय के धारण करते से जीव को प्राप्त हुई दै. । संसारी जीव अशुद्ध जीव कहलाते हैं। और बह अयुद्धता अथुद् पर्याय घारण करनेसे ही है। सिद्ध जीव ' परम दिन ओर परम नियंठ हैं कारण एक यही है कि सिद्ध जीवों की उशुद्ध पर्याय का धारण करनो सब था न होगया है । वे सब प्रकार क इसे निमुंक्त दोगएहैं; इसी छिये अमूर्तीक, अविनाशी , निरंजन . यदु को प्राप्त होचुके हूं । इसल्यि जीवों को संसारी पर्यायों का धारण _ करना मछिनता और अशुद्धता का कारण है। संसारी जीबों को मठिनता के कारण राग ढष भी हैं । जिन जोवों को मोदद क्रोध मान मध्य छोभादि रूप विषयकषायों की विशेष उम्रता है। परिगा्मों में जिनके विशेष मोहादिदुर्भावों :की कछुपता डर उन जीवॉको दी मछिन पर्याय अधिकतर प्राप्त होती हैं। नदीन पर्वाय - 'यारण करने के कारण जोतों के मोद्दादिरुप दुर्भाव अधिक होते हैं । सरक गति में-इस जीवकों कैसी मछिन पर्याय प्राप्त होती है उधम वीमत्स और ग्ठानि पूर्ण वे क्रिपक झरीग्में जीवों को अपनी




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