केशव ग्रन्थावली भाग 2 | Keshav Granthavali Khand 2

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Keshav Granthavali Khand 2 by विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामचंद्रचंद्रिका २३७ राज वहे वह साज वहे पुर। नाम वहे वह धाम वहें थुर। झुठे सों झठहि बाँधत हो मन । छाड़त हो तृप सत्य सनातन ॥रे२॥ - ( दोहा ) जान्यों बिस्वामित्र के कोप बढ््यों उर आइ। राजा दसरथ सों कह्यो बचन बसिष्त बनाइ ॥र२ दे॥ वसिष्त--( षट्पद ) इनहीं के तपतेज जज्ञ की रक्षा करिहें। इनहीं के तपतेज. सकल राक्षतबल हरिहें। इनहीं के तपतेज तेज . बढ़िहेँं तन तुरन। इनहीं के तपतेज. होहिंगे मंगल पूरन। कहि केसव जयजुत आइहें इनहीं के तपतेज. घर। नृूप बेगि. राम लछिमन दुवौ. सौंपो. बिस्वामित्र-कर ॥२४॥ . ( सोरठा ) राजा और न मित्न जानहू बिस्वामित्र से। . जिनको अमित चरित्र _ रामचंद्रमय मानिय ॥२४॥। ( दोहा ) नृप पे बचन बसिष्ठत को केसे मेट्यो जाइ। सॉप्यो. बिस्वामित्र-कर .... रामचंद्र अकुलाइ ॥२६।॥। ( पंकजवाटिका ) राम चलत नृप के जुग लोचन । बारि भरित भए बारिद-रोचन ॥। पाइन परि रिषि के सजि मौनहिं। केसव उठि गए भीतर भौनहिं ॥२७॥। ( चामर ) बेदमंत्र-त॑ंत्र सोधि अख्र सख दे. भले। रामचंद्र लक्ष्मने सु बिप्र क्षिप्र ले चले । लोभ क्षोभ मोह गवँ काम कामना हई। _ नींद भूख प्यास त्वास बासना . सबे गई ॥२८॥ ... ( निशिपालिका ) कामबन . राम. सब. बासतरु . . देखियो। .. नेन. सुखदेन मन. मेनमय.. लेखियो। [ ररे | नाम-बंस (दीन ₹ प्रताप०) । | २५ ] जिनको-इनको. (सर० प्रताप ०) । मानियै-जानिये (कोमुदी) । [ २४ ] पै-सों (सर०) ते (प्रताप०) । [ २७ ] रोचन-मोचन (सर०) । [ २८ _ तंत्र ०-साधि-साधि (सर०) । की डे.




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