वैदिक साहित्य का इतिहास | Vaidik Sahity Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.84 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दि साहिय का परिचय | ३
गादंरगर विचार है हेड दे बौर रिया इोप़ो ही ससान परतु थे नित्यप्न शरद
श्दोल होते है इरणिए मरते रिद्या और देय इर्द समानायक हो हैं। इस
हरि में देश हर था रमानाधंक प्रयोग सायु् घजुवेद आदि शब्दों से प्राचीन
शत मो सड़ा दा रहा है । इस प्रशर आरददायन श्रौर्सू्र में अनेक शिद्याओ
दे साथ देद शब्द वा प्रयोग पिया शदा है और जद वेद शरद का प्रयोग
विधिस्ट पारिमादिव ख्थ में होता है--
समर्थ हरायोबेदनामपेपम् ।**
धरिमाया वे झनुसार सर्द भाग और झाहाश भाग दोनों के लिए वेद
शरद निस्वाप में प्रयोग होता चता आर रहा है और यदि हम रावुतिए हप्टि
से इस शरद पर विभार बरे सो देद के सत्य सांग था सहिता सांग को ही सेद
बह शपते है जो नि भौलिक हप्टि दे अधिए रगत है। सिस््तु थी शेन्रेशचर्द्र
थी लिपते हैं--
हथारे प्राघीन झाचाय 'वेद' पद से मस्त्र और श्ाद्यण को सेते हैं, आप-
लर्दयह परिभाषा सूत्र “ससख शाहाणपोर्ामिधेयमू ” महामुि जैमिनो का भी
यही मत है--तस्वोदरेपुसर्थारव्या' धर सूप में प्रूबं सीमाशा सूप २0१३२
सर्च वा सक्षण देकर शापने लिसा है हि वेद ता अवशिप्ट अश शाहाण है-
“शोघे हाहाण शब्द: । ब्राह्मण प्रधानतया मन्त्री का ब्यार्यान है । ब्राह्मण
बेंगा ही वेद है जँसा थि मन्त्र । वेद की दुछ शासाओ में भस्ताश और
ग्राहमणाश मिध्न प्रन्यो मे पाये जाने हैं, यया-शुवत यजुवेद के मन्त्र हैं-
थाजमनेयी सहिता में और उनके मन्त्रो वे ब्राह्मण हैं शतपय-ग्राह्मण में । परन्तु
शष्ण यजुवेद में मन्त्र और ब्राह्मण एक ही साथ पाये जाते हैं, यधा--काठक-
सहिता, मेत्रायणी सहिता, तैनिरीय सहिता, द्राह।थो में और दो प्रकार के
प्रन्य, पाए जाते हैं--आरण्यक और उपनिपद्। थुति या वेद की अवधि
उपनिषद् तक है ।
जहाँ तक हमारा अपना विचार है, हम यही लिखेंगे कि वस्तुत वेद शब्द
बा वास्तविक अभिप्राय मात्र सहिता मांग से है क्योकि ब्राह्मण क्षारण्यक उप-
निपद् भाग उसवी ब्यास्या य भाप्य ही है। इस परव्ती सादित्य वो हम
सम्पूर्ण वैदिक साहित्य इस शब्द के: अन्तर्गत तो अवश्य ही समाहित कर
नाव
मंगलदेव : भारतीय संरहति का विकास ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...