जड़ की बात | Jad Ki Bat

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Jad Ki Bat by जनेन्द्रकुमार - Janendrakumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जड़ की बात ' भर . पर पड़ा है, खुद में कुछ नहीं है । वह हम सब श्रहमंमन्यों की श्रहंमन्यता ' की श्रालोचना है, मनुष्य पर व्यंग है । वह हमारी थाम है । जितनी देर वह जिन्दा लाश वहां पड़ी है, उत्तना ही हमारा पाप बढ़ता है। उसके मर जाने से वहं पाप कायंम होता है। .. 'मनिव-जाति की व्यवस्था के काम में करोड़हा करोड़ रुपया एक जगह जमा होता है और -उससे फ़ौज श्रौर श्रस्न-शस्त्र, क्रिले, श्रदालत, दफ्तर श्रौर सरकारें बनती हैं । वह दासन की सत्ताएं सुव्यवस्था के लिए हैं। इसलिए हैं ( यानी होनी चाहियें ) कि सब श्रादमी जियें श्रौर एक : दूसरे का भला. चाहते हुए मरें । भ्रर्थात्‌ वे सत्ताएं श्रादमियों के लिए हैं । सत्ता के लिए श्रादमी नहीं हे । पर श्राज श्रन्घेर हे तो यही कि उस _ संत्ता की रक्षा के लिए श्रादमी के श्रस्तित्व को माना जाय । श्रादमी यहां ' इसलिए हूं कि वह मरे भ्रौर सत्ता जिये । वह ईंधन हैं कि सत्तावालों की रोटी पके । भ्रर्थात उनका प्रदन नहीं है जिनकी सुव्यवस्था के लिए सब कुछ हू, बल्कि मानों व्यवस्थों (1.8छ7 800 (07067) ही वह देवी : हू जिस पर बलिदान होना व्यक्ति के व्यक्तित्व की सा्थेकता हैं । सरकार _ ईदवर है श्रौर आदमी उंस महाप्रभु ( सरकार ) का सेवक होने के लिए . है। फंलत: सरकारी श्रमन सब कुछ है और श्रादमियों का मरना-जौना कुछ नहीं है । सुशासन के लिए श्रादमियों को मारा जा सकता है । यही तो है जहां खेरावी हैं । श्रादमी एक गिनती हो गया हूँ। वह झात्मा नहीं है, पवित्र नहीं है । उसमें भ्रपने श्राप में कोई कीमत नहीं है । दफ्तर चल. रहे हों, श्रौीर सरकार की मशीन चल रही हो । जब वह 'नवीज़ ठीक चल रही है, तब दो-चार या सौ-हज़ार श्रादमी भूखे श्रौर नंगे मर'जांय तो क्या हुश्ा ? सुशासन की श्रारती तो श्रखंड चल रही है, उसका रिकार्ड दफ्तर में बराबर तैयार हो रहा है । यह जो श्रादमी सड़क के किनारे पड़े मिनकते हुए मर रहे ' हैं, यह तो शभ्रंपने कर्मों का फल पा रहे हैं। बाकी हमारा बजट देखो, हमारी रिपोर्ट देखो, हमारे कारखाने में चल कर/उसका इन्तज़ाम देखो । तब .तुम्हारी शांखें खुलेंगी




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