जड़ की बात | Jad Ki Bat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.31 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जड़ की बात ' भर
. पर पड़ा है, खुद में कुछ नहीं है । वह हम सब श्रहमंमन्यों की श्रहंमन्यता
' की श्रालोचना है, मनुष्य पर व्यंग है । वह हमारी थाम है । जितनी देर
वह जिन्दा लाश वहां पड़ी है, उत्तना ही हमारा पाप बढ़ता है। उसके
मर जाने से वहं पाप कायंम होता है।
.. 'मनिव-जाति की व्यवस्था के काम में करोड़हा करोड़ रुपया एक
जगह जमा होता है और -उससे फ़ौज श्रौर श्रस्न-शस्त्र, क्रिले, श्रदालत,
दफ्तर श्रौर सरकारें बनती हैं । वह दासन की सत्ताएं सुव्यवस्था के लिए
हैं। इसलिए हैं ( यानी होनी चाहियें ) कि सब श्रादमी जियें श्रौर एक
: दूसरे का भला. चाहते हुए मरें । भ्रर्थात् वे सत्ताएं श्रादमियों के लिए हैं ।
सत्ता के लिए श्रादमी नहीं हे । पर श्राज श्रन्घेर हे तो यही कि उस
_ संत्ता की रक्षा के लिए श्रादमी के श्रस्तित्व को माना जाय । श्रादमी यहां
' इसलिए हूं कि वह मरे भ्रौर सत्ता जिये । वह ईंधन हैं कि सत्तावालों की
रोटी पके । भ्रर्थात उनका प्रदन नहीं है जिनकी सुव्यवस्था के लिए सब
कुछ हू, बल्कि मानों व्यवस्थों (1.8छ7 800 (07067) ही वह देवी
: हू जिस पर बलिदान होना व्यक्ति के व्यक्तित्व की सा्थेकता हैं । सरकार
_ ईदवर है श्रौर आदमी उंस महाप्रभु ( सरकार ) का सेवक होने के लिए
. है। फंलत: सरकारी श्रमन सब कुछ है और श्रादमियों का मरना-जौना
कुछ नहीं है । सुशासन के लिए श्रादमियों को मारा जा सकता है ।
यही तो है जहां खेरावी हैं । श्रादमी एक गिनती हो गया हूँ। वह
झात्मा नहीं है, पवित्र नहीं है । उसमें भ्रपने श्राप में कोई कीमत नहीं
है । दफ्तर चल. रहे हों, श्रौीर सरकार की मशीन चल रही हो । जब वह
'नवीज़ ठीक चल रही है, तब दो-चार या सौ-हज़ार श्रादमी भूखे श्रौर
नंगे मर'जांय तो क्या हुश्ा ? सुशासन की श्रारती तो श्रखंड चल रही
है, उसका रिकार्ड दफ्तर में बराबर तैयार हो रहा है । यह जो श्रादमी
सड़क के किनारे पड़े मिनकते हुए मर रहे ' हैं, यह तो शभ्रंपने कर्मों का
फल पा रहे हैं। बाकी हमारा बजट देखो, हमारी रिपोर्ट देखो, हमारे
कारखाने में चल कर/उसका इन्तज़ाम देखो । तब .तुम्हारी शांखें खुलेंगी
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