संख्या सूत्र वृत्ति | Samkhya Sutra Vritti
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.31 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सांख्यद्धूच ढत्यो' ९, ३. थ्
निदत्ति । औपधादिना च* नावश्ं दुःख निवतंते,
यदि वा क्थाचक्त्रिवर्तत* पुनरन्येन न भवितव्यमिति
नास्ति नियमः ॥
भवतु “दुःखनिदत्तिस्तथापि न पुरुषाधेः, पुनः-
पृनस्तथाविध प्रती कार करणादित्यत आइ५ ॥
दृष्टात् उक्तोषधादिरूपात् तस्सिद्धि: दुःखात्यन्तनिठत्तिसिद्धि: न
भवति । कुत: । निषृत्ते: दुःखनिद्त्ते: । अनन्तरमिति शेष: ।
अनुद्त्तिदशनादपि दुःखजातौयोत्पत्तिदशनादपि । अयं भाव: ।
नोकैरुपायेदं:खानुत्पत्तिविशिष्टा दुःखनिद्त्तिभंवति, तत्तदुपाये-
स्तत्तदुःखेष नष्ट व्वपि दुःखान्तरोत्पत्तिदरशनात्, तस्माद्सुकरते £पि
तक्वज्ञानमेषितव्यमिति ॥
ननु मा खदौषधादिमि: “पूरवेभाविदुःखनिदत्ति, तथापि
' णब:पुनःप्रती कार करण तु भाविदु:खनिदत्तिरपि स्थाद्ति शक्कते ॥
प्रात्यिकताती कार ब्तत्यती कार चष्ट नात्पुरुपारथ-
खम॥ 5!
यथा प्रत्यदं झुत्मतीकाराय वरान्नभझणादिना ठृप्तस्य
९ (1 त्वनुत्पत्तिनिदत्ति: । ९ च 15 01155100 पा हि
₹ 0 निवतंतें। ४ 2. (? दु्खानि*। ५ ० पूरवभावि० |
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Sudarshan
at 2019-01-18 10:44:54