आनन्द गीता | Aanand Geeta
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.72 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीता का सार
श्रात्ता प्रमर है। इच्छाप़ों का दमन करो । निष्काम भाव ,.
सब की सेवा करो । परमात्मा का ही सतत ध्यान करो । ४ :.'
विभ्रुतिमत्ता के दर्शन करो । देवी सम्पत् संग्रह करो । ६९%
के बीच भी मन को समान प्रौर सन्तुलित रखो । पूर्ण: :-
करो। यही परमात्मा के द्शतों का मागे है ।
मोक्षप्रिय ने कहा--
हे स्वामिनू, मुझे ग्राज गीता के तत्त्व का उपदेश दीगिए।.
मुक्त गीतोपदेश की उत्कट शमिलाषा है ।
स्वामी शिवानन्द जी कहते हैं-
श्रात्मा शाश्चत है, सवंव्यापक ग्रौर श्रमर है। यहू ४०१
तुम्हारी हृदय-गुह्दा में विराजता है । शरीर-विनाश हो जाने +'
भी यह जीवित रहता है ।
सब श्राशाश्रों को त्याग कर श्रात्मा ही में सत्तुष्ट रहो!
काम-लिप्सा, भय ग्रौर क्रोध से मुक्त रह तथा मोहपाश मे ॥'
हटकर, श्रद्वेत-निष्ठा की प्राप्ति और श्रात्मा के शखत +। ”
की भ्रनुभ्ुति करो ।
तुम्हारा कत्तंव्य है कि कर्म करते जाग्नो। परिणाम *
सुफल की ब्राशा करना तुम्हारी श्रनधिकार चेष्टा है। शरण
फलाशा से मुक्त रह कर प्रत्येक कम करते रहो ।
ठृण्णा से परित्रजित, मोहपाश से श्रसंस्पृष्ट तर्था की
ममता से विमुक्त व्यक्ति ही शाश्वत शास्ति का भागी होता है '
नाप
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