विवेकानन्द साहित्य खंड 9 | Vivekanand Sahitya Part 9
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
169.66 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चविवेकानन्द साहित्य रू
या गृहहीन निराश्रितों के लिए घर न बनवा दे, तब तक मनुष्य को स्वयं घर में
रहने का अधिकार नहीं। गृहस्थ का घर प्रत्येक दीन और दुखी के लिए सदा
खुला रहना चाहिए, तभी वह सच्चा गृहस्थ है। यदि कोई गृहस्थ यह समझता है
कि मैं और मेरी पत्नी, ये ही दो व्यक्ति संसार में हैं और केवल अपने और अपनी
पत्नी के भोग के लिए ही वह घर बनाता है, तो वह “ईरवर का प्रेमी” कदापि नहीं
हो सकता। केवल अपनी उदर-पुर्ति के लिए भोजन पकाने का किसी मनुष्य को
अधिकार नहीं है। दूसरों को खिलाने के बाद जो बच रहे, उसीको खाना चाहिए।
भारत में यह प्रथा है कि जब किसी ऋतु का फल--आम, रसभरी इत्यादि--पहले-
पहल बाज़ार में आता है, तो कुछ फल खरीदकर पहले ग़रीबों को दे देते हैं और
फिर स्वयं खाते हैं। इस उत्तम प्रथा का अनुकरण करना इस देश (अमेरिका)
में अच्छा होगा । ऐसे व्यवहार से मनुष्य स्वयं निःस्वा्थ बनेगा और अपनी पत्नी और
बच्चों को भी उत्तम दिक्षा प्रदान करेगा। प्राचीन काल में हिब्रू जाति के लोग
फ़्सल के पहले फलों को ईश्वर को अपण किया करते थे। प्रत्येक वस्तु का अग्रांश
दीनों को देना चाहिए, अवदिष्ट भाग पर ही हमारा अधिकार है। दीन ही
परमात्मा के रूप (प्रतिनिधि) हैं। दुःखी ही ईर्वर का रूप है। जो मनुष्य बिना
दिये खाता है और ऐसे खाने में सुख मानता है, वह पाप का भागी होता है।
पाँचवीं क्रिया है 'भूतयज्ञ', अर्थात् नीची योनिवाले प्राणियों के प्रति हमारा कर्तव्य ।
यह मानना कि समस्त जीवधारी मनुष्य के लिए ही बनाये गये हैं तथा इन प्राणियों
की हत्या करके मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार उपयोग कर सकता है, तिरी पैशाचिक
भावना है। यह शैतान का शास्त्र है, भगवान् का नहीं। शरीर के किसी अंग की
नाड़ी स्पंदन करती है या नहीं यह देखने के लिए जीवधारियों को लेकर कांट डालना
कैसा जघन्य कार्य है--विचारो तो सही ! मुझे खुशी है कि हिन्दू लोग ऐसी बातें
गवारा नहीं कर सकते, चाहे उन्हें अपनी विदेशी सरकार से इसके लिए कैसा भी
प्रोत्साहन क्यों न मिलें। हम जो अन्न खाते हैं, उसके एक अंश पर अन्य जीव-
धारियों का भी अधिकार है। उन्हें भी प्रतिदिन खिलाना चाहिए। यहाँ प्रत्येक
नगर में दीन और लंगड़ों या अन्धे, घोड़ों, बिल्लियों, कुत्तों, गाय-बैल इत्यादि पशुओं
के लिए अस्पताल रहने चाहिए। वहाँ उन्हें खिलाया जाय तथा उनकी देख-भाल
की जाय ।
इसके बाद की साघना है “कल्याण” या पवित्रता, जिसके अन्तर्गत कई बातें
_ हैं: प्रथम--सत्य' या सत्यता। जो सत्यनिष्ठ हैं, सत्यरूपी ईदवर उनके
समीप आता है, अतएव हमारे विचार, वाणी और कायें सभी पुणे रूप से सत्य
होने. चाहिए। फिर “आजंव'--निष्कपट भाव या सरलता। इस दाब्द का अर्थ
सन
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