हिंदी कवि समीक्षा | Hindi Kavi Samiksha

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Hindi Kavi Samiksha by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लि क्र चन्दब € चन्दबरदाइ हैं जिनसे शड्ार को ही कथचि ने चित्रित किया है । रासो शब्द का अथ-- रासो शब्द की व्युत्पत्ति तथा अथ के विपय में भी विद्वानों मे पर्याप्र मतभेद है । विभिन्न विद्वान विभिन्न स्रोतों से इस शब्द का विकास मानते हे | फ्रेच लेग्वक गार्सी केतोंसी ने रासो शब्द कीं उत्पत्ति राजसय शब्द से माना है । सिश्रवन्घुआों रहस्य शब्द को रासों को रूप दिया है। आचाये शुक्तजी रसायण शब्द को रासो का बीज स्वीकार किया है। राजस्थानी भाषा के घिद्वान रासों शप्द का गुल रामह कदते है। इस समक शब्द को है। रूपान्तर आपस शा सधा राजस्थानी मापा में रास हुआ चुत लोगा के विचार से यह रास ही रास बन गया । प्रार्च।न राजस्थासी से ससक शाद को अजय हन-कथा वान्य । ब्रजमापा से था प्रम-कषों के लिए चटनी सह शब्द व्यवद्धव हा है । बुजराना आर साजस्थारी मे असक रास ग्रन्थ ।लगख गये ह । दही सकता ८ गे सत्वकर यह रासो शब् वीर-रसात्मक यु दनकघापरण एतिहासिक काव्य से रूढ़ हो गया हो । चुन्दि विद्वान राखी को सालो रराडा रास्सा आदि के न फेर क साम्य से से। ढ़ ढफर सुद्रकधा के अगन से उचत समस्त है । तय दर रासों की सापा-लण रागों की भाषा के सम्बन्ध से मो घिढ्ानो से पयाप सतसेद रॉष्रिगत होता है । जिस सकार ग्रन्थ वी प्रामाण्गियाता का परम है वसा ही भाषा का भी । सासों की विपयनवस्तु को देख्वफर ही जिस प्रकार यह निगय नहीं हो पाला कि यह बारहवीं




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