ओझा निबन्ध संग्रह भाग-1 | Ojha Nibandh Sangrah Bhag-i

Ojha Nibandh Sangrah Bhag-i by गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा -Gaurishankar Heerachandra Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) _ (१२) ऊ्णेश- यह किसी देश का नाम हो, ऐसा प्रसाण नहीं सिल सका, परन्तु 'उरण' सामका एक सगर वस्वई अहाते के थाणा जिले में था, जो फिलारा बंश के राजाओं के राजप्रतिष्ठित नगरों सें से एक गिता जाता था । (१३) ऊपर-क्षेत्र:- क्षारभूमि वाला देश तथा रेणुका भादि नवतीर्थ-* 11 इलोक।। रेणुका सुकरः काशि कालीकाल बटेक्वरो ॥। कालिक्जरों मेहाकाल ऊपरा नवमुक्तिदाः ॥ १11 तइति बराहुपुराणम्‌ ॥। (१४) कम्बोज:- 1॥इलोक।। पब्चनद समारस्थ स्लेच्छाइक्षिण पुर्वत: ॥। कस्वोज देशों देवेकि ! वाजिराशि परायण: ।। १11 अर्थ--पब्जाव से लेकर अफगानिस्तान तक, हें. पानंती ! कम्बोज देव है; जो घोड़ों की गणना में श्रेष्ठ है । (१५) कर्णीटि:- ।।इलोक।। रामनाथं समारस्थ श्री रंगान्तं विलेश्वरिः 11 कर्णाट देवों देवेषि ! साम्राज्य भोगदायकः ।1 १11 मर्थ--रामनाथप से लेकर श्रीरंग तक कर्णाट देश है, बहु राज्य भोग- दायक है और दस लाख की आय को साम्माज्य कहते हें । यथाः-- ॥इलोक)। लक्षाधिपत्य॑ राज्यंस्यात्‌ साम्राज्य दश लक्षके । सातलक्षे महेनानि ! महा साम्राज्यमुच्यते 11१11 ॥ इति चरदा तस्‍्त्रे ॥प यह देश दक्षिण में इसी नाम से प्रसिद्ध है । भ सम्पादकीय टिप्पण *ै यह गंगा-यमुना के तटवर्ती तथा उससे मिले हुए प्रदेश का सूचक है, जिसमें उपर्युक्त नौ तीर्थ थे । उपयुक्त दलोक से यह वड़ा विस्तारवाला देश था । वैसबंदधी महाराज हप॑ंवर्डन, रघुवंशी प्रतिहारों तथा गाहड़- वालों की राजवानी कन्नौज (कान्यकुव्ज) का भी ऊपर-क्षेत्र में ही समा- वेश हो जाता है । थे रामनाथ--सामेश्वर दिव ! यूँ एत्रेय ब्राह्मण में इस विपय का विदद्‌ वर्णन है और स्पप्ट रूप से




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